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________________ नेश्या-स्वरूप १४१ किसी भी आत्मा की प्रवृत्ति हो वह आत्मा कृष्णलेश्या वाली है। ऐसी लेश्या वाला फिर चाहे वह पुरुष हो या स्त्री, मर कर नीची गति में जावेगा । हे गौतम । नीललेण्या का वर्णन यों हैमूल:--इस्साअमरिस अतको. अविज्ज माया अट्टीरिया य ! गेद्धी पओसे य सढे, पमत्त रसलोलुए ॥४॥ सायगवेसए य आरम्भा अविरओ, खुद्दो साहस्सिओ नरो। एअजोगसमाउत्तो, नीललेसं तु परिणमे ।।५।। छाया:--.ईयोऽमर्षातपः, अविद्या मायाह्रिकता । गृद्धिः प्रदेषश्च शठः, प्रमत्तो रसलोलुपः ।।४।। सातागवेष कश्चारंभादविरतः क्षुद्रः, साहसिको नरः । एतद्योगसमायुक्तः, नीललेश्यां तु परिणमेत् ।।५।। अन्वयार्थ:-हे इन्द्रभूति ! (इस्सा) इO (अमरिस) अत्यन्त क्रोध, (अतवो) अतप (अविज्ज) कुशास्त्र पठन (माया) कपट (अहीरिया) पापाचार के सेवन करने में निलंग्ज (गेली) गुद्धपन (य) और (पओसे) द्वेषभाव (सढे) धर्म में मंद स्वभाव (पमते) मदोन्मत्तता (रसलोलुए) रसलोलुपता (सायगवेसए) पौद्गलिक सुख की अन्वेषणा (अ) और (आरम्मा) हिमादि आरम्भ से (अविरओ) अनिवृत्ति (छुट्टो) क्षुद्र मावना (साहस्सिओ) अकार्य में साहसिवता (एअजोगसमाउत्तो) इस प्रकार के आपरणों से युक्त (नरो) जो मनुष्य हैं, वे (नीललेस) नीललेशमा को (परिणमे) परिणमित होते है।। भावार्थ:-हे गौतम ! जो दूसरों के गुणों को सहन न करके रात-दिन उनसे इर्ष्या करने करने वाला हो, बात-बात में जो क्रोध करता हो । खा-पी कर जो सण्ड-मुसण्ड बना रहता हो, पर कभी भी तपस्या न करता हो, जिनसे अपने जन्म-मरण की वृद्धि हो ऐसे कुशास्त्रों का पठन-साठन करने वाला हो, कपट करने में किसी भी प्रकार की कोर कसर न रखता हो, जो मली बात कहने वाले के साथ वेष-भाव रखता हो, धर्म कार्य में शिथिलता दिखाता हो, हिंसावि महारम्म से तनिक भी अपने मन को न खींचता हो, दूसरों के अनेकों
SR No.090301
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size4 MB
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