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________________ निर्ग्रन्थ-प्रवचन (अध्याय बारहवाँ ) लेश्या स्वरूप ॥ श्रीभगवानुवाच ॥ मूलः --- किव्हा नीला य काऊ य, तेऊ पम्हा तब य । सुक्कलेसा य छट्टा य, नामाई तु जहक्कभं || १ || छाया : - कृष्णा नीला च कापोतीच, तेज: पद्मा तथैव च । शुक्ललेश्या कठीण तु खकम् ॥१॥ और (काक) कापोत (थ) और (तेक) तेजो और (छट्टा) छठी (सुमकलेसा) शुक्ल लेवया यथाक्रम जानो । अन्वयार्थ :- हे इन्द्रभूति ( किण्हा) कृष्ण (य) और (नीला) नील (य) (साहेब) तथा (पम्हा) पद्म (य) (नामाई ) ये नाम ( जहकम्मे ) आत्मा के जैसे परिणाम होते छः भागों में विभक्त है उनके भावार्थ:- हे आर्य ! पुण्य-पाप करते समय हैं उसे यहाँ लेश्या के नाम से पुकारेंगे। वह लेश्या यथाक्रम से नाम यों है -- (१) कृष्ण (२) नील (३) कापोत (४) तेज: ( ५ ) पद्म और ( ६ ) शुक्ल लेश्या । हे गौतम! कृष्णलेश्या का स्वरूप यों हैं: १ (१) कृष्णलेश्या वाले की भावना यों होती है कि अमुक को मार डालो, काट डालो, सत्यानाश कर दो आदि-आदि। ( २ ) नीललेश्या के परिणाम वे हैं जो कि दूसरे के प्रति, हाथ-पैर तोड़ डालने के हों (३) कापोत लेश्या भावना उन मनुष्यों की है जो कि नाक, कान, अंगुलियाँ आदि को कष्ट पहुंचाने में तत्पर हों । ( ४ ) तेजोलेश्या के भाव वह है जो दूसरे को लात घूँसा, मुक्की आदि से कष्ट पहुँचाने में अपनी बुद्धिमत्ता समझता हो । (५) पद्मलेश्या वाले की भावना इस प्रकार होती है कि कठोर शब्दों की बौछार करने में आनन्द मानता हो । (६) शुक्ललेश्या के परिणाम वाला अपराध करने वाले के प्रति भी मधुर शब्दों का प्रयोग करता है ।
SR No.090301
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size4 MB
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