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निग्रंन्य-प्रवचन
छाया:-कुशाग्र यथाऽवश्यायविन्दुः, स्तोक तिष्ठति लम्बमानकः ।
एवं मनुजानां जीवितं, समयं गौतम ! मा प्रमादी: ।।२।। अग्नया:--(गोयम !) हे गौतम ! (जह) जैसे (कुसग्गे) कुष के अग्रभाग पर (लंघमाणए) लटकती हुई (मोनिंदुए) ओस की बूंद (पोथ) अल्प समय (चिर) .इसी है (4) शी कामगुआ मनुष्य का जीविय) जीवन है । अतः (समय) एक समय मात्र (मा पमायए) प्रमाद मत कर ।
भावार्थ:-हे गौतम ! जैसे घास के अग्रभाग पर तरल ओस की बूंद थोड़ें ही समय तक टिक सकती है। ऐसे ही मानव शरीर धारियों का जीवन है। अतः हे गौतम ! जरा से समय के लिए भी गाफिल मत रह । मल:-इइ इत्तरिअम्मि आउए,
जीविअए बहुपच्चवायए। विहुणाहि रयं पुरेकर्ड,
समयं गोयम ! मा पमायए ।।३।। छाया:-इतीत्वर आयुषि, जीवितके बहु प्रत्यवायके ।
विधुनीहि रज: पूराकृतं, समयं गौतम ! मा प्रमादीः ।।३।। अम्बयार्थ:- (गोयम !) हे गौतम ! (इइ) इस प्रकार (आजए) निरुपक्रम आयुष्य (इत्तरिअम्मि) अल्प काल का होता हुआ और (जीविमए) जीवन सोपक्रमी होता हुआ (बहुपन्धवायए) बहुत विघ्नों से घिरा हुआ समझ करके (पुरेफर्ड) पहले की हुई (रय) कर्म रूपी रज को (विहणाहि) दूर करो । इस कार्य में (समय) समय मात्र का भी (मा पभायए) प्रमाद मत कर ।
भावार्थ:-हे गौतम ! जिसे शस्त्र, विष, आदि उपक्रम मी बाधा नहीं पहुंचा सकसे, ऐसा नोपक्रमी (अकाल मृत्यु से रहित) आयुष्य भी पोड़ा होता है । और शस्त्र, विष आदि से जिसे बाधा पहुँच सके ऐसा सोपक्रमी जीवन पोड़ा ही है। उसमें भी ज्वर, नासी आदि अनेक व्याधियों का विघ्न भरा पड़ा होता है। ऐसा समम कर हे गौतम ! पूर्व के किये हुए कमी को दूर करने में क्षणभर प्रमाद न करो।
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