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निमित्तशास्त्रम्
मंडुक्क कुंभसरिसा गजदंतसमाण रूवसे कासा । जइ दीसंत पडता देसविणासं तु णायव्वं ॥ १५२ ॥
अर्थ :
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मेंढक, घड़े या हाथी के हाँत के समान पत्थर बरसने पर देश का ' अवश्य नाश होगा ।
करिकुंभछत्तसरिसा थाली वज्जोयमा जइ पडंति । कुव्वंति देसणासं रायाणं सव्वा विणासंति ॥१५३॥ अर्थ :
घड़ा, हाथी, छत्र, थाली और वज्र के आकार को धारण करने वाले पत्थर गिरने पर देश का नाश होता है व राजा की मृत्यु होती है ।
प्रकरण का विशेषार्थं
आकाश से अकस्मात् पत्थरों की वर्षा होती है। उनके कारण से प्राप्त होने वाले शुभ और अशुभ फलों का वर्णन इस उपलपतन नामक प्रकरण में किया गया है।
जिस क्षेत्र में चावल के समान आकार वाले पत्थर बरसते हैं, उस देश में सुभिक्ष फैलेगा ।
यही फल सरसों के समान, खजूर के समान, बेर के समान, मूंग के समान और अरहर के समान पत्थरों के पड़ने पर होता है।
जिस क्षेत्र में शंख और शुक्ति के समान आकार वाले अथवा मसूर के समान पत्थर बरसते हैं, उस देश में निकट भविष्य में अच्छी वर्षा होने 'वाली है ऐसा जानना चाहिये ।
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जिस क्षेत्र में मेंढक, घड़े और हाथियों के दाँतों के समान आकार, वाले पत्थर बरसते हैं, उस देश का नाश अवश्य ही होगा ।
जिस क्षेत्र में हाथी, छत्र, थाली और वज्र के समान आकार वाले 'पत्थर बरसते हैं, उस देश का नाश तो अवश्य होगा, साथ में राजा की मृत्यु भी हो जायेगी ।