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निमित्तशास्त्रम्
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सूरम्मितावयंती पुहवी तावेइ णिवणियाणुक्का । सोमे पुण सोममुही खेमसुभिक्खंकरी उक्का ॥ १२९ ॥
अर्थ :
यदि रविवार के दिन उल्कापतन हो तो पृथ्वी पर गर्मी से सम्बन्धित पीड़ा होगी और यदि सोमवार को उल्कापतन हो तो सुभिक्ष का निर्माण करती है ।
जस्सय रिक्खे पड़िया तरसेव य सोहणं बहु कुणई। अण्णरसवि कुणई भयं थोवं-थोवंण संदेहो ॥१३०॥
अर्थ :
उल्कापात जो जहाँ से उठा हो वहीं पर लौट जाये तो अच्छा है, अन्यथा वह पुनः पुनः भयोत्पादन करती है। इसमें किसीप्रकार का सन्देह नहीं है।
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कित्तिय रोहिणिमज्झे पङमाणी कुणइ पुहइतावं । डहइय पुरगामाई रायगिहंणत्थि संदेहो ॥१३१॥
अर्थ :
यदि उल्कापतन कृतिका व रोहिणी नक्षत्र में हो तो पृथ्वी के. लिये सन्तापदायक है, शहर या गाँव को राज्य या राजमहल को नष्ट कर देती है। इसमें कोई सन्देह नहीं है ।
चोरा लुंपंति मही रायकुलापयाची लुप्पया होंति । विलयंति पुत्तदारा पापविणस्सते तथा सव्वं ॥ १३२॥ अर्थ :
धरातल पर चोरों का भय बढ़ेगा। माता पुत्र को और स्त्री प्रति को छोड़ देगी ।
इंदो वरसइ मंदं सस्साण विणासणो हवइ लोए ।