________________
निमित्तशास्त्रम
[१०९३ ८२. और अपलिया नाज का जाच करता है। केतु शुक्र के साथ। उदय हो तो क्षत्रियों का नाश करता है। चंद्रमा के साथ बच्चों का घात करता है। १८३. और राजा को मृत्युसूचक है । यदि सूर्य के साथ नजर आवै तौ । देश नाश करता है। १८४. अथवा धुन के भीतर जजर आवै तौ तमाम पृथ्वी चल को अचल करै । अचल को चल करके तबाह कर दे। १८४. सायंकाल को नजर आवै तौ अथावा शिशुमार चक्र में दिखाई दे तो महा-अशुभ है । १८५. जहाँ पर केतु नजर आता है वहाँ पर सकल पृथ्वी का नाश करता है। इसलिये ब्लानियों को चाहिये कि जिस देश में यह दिखाई दे उस देश * का त्याग कर दे। १८६. इस प्रकार संक्षेप से उत्पातौं का स्वरूप कहा । अगर किसी महाशय के अधिक जानने की इच्छा होय तो अन्य ग्रंथनि मैं देख ले।
१८७. इस प्रकार कितने ही उत्पातौं का स्वरूप अल्पग्रन्थ में मुझ ४ ऋषिपुत्र मुनि. यथामति वर्णन कीया।।
इति श्री प्राषिपुत्र प्रणीत निमित्तशास्त्रं समाप्तम् ।
श्री सं १९८९ कार्तिक कृष्णा ७ भृगु वासरे लि. शंकरलाल शर्मा गौड।
शुभं भूयात् । श्री