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-निमित्तशास्त्रम् -
१०५) १२८. ईशान कौंन की पड़ी हुई उल्का स्त्रियों का गर्भ नाश करती है। और अगर पूर्व में उल्का पडे तो घोर भय उत्पन्न करती है। १२९. यदि उल्का आदित्यवार को पडै तौ पृथ्वीपर गरमी संबंधी आदिक पीड़ा होते । और अगर चंद्रवार को गिरै तो कुशल सुभिक्ष करती।
१३०. जो उल्कापात जहाँ से उठा हो और वहीं वापिस लौट जावै तो अच्छा है । वरना अवश्य बार-बार तकलीफ देता है। १३१. कृतिका और राहिणी नक्षत्र मैं अगर उल्का पडै तो पृथ्वी को संताप देती है और शहर या ग्राम पर राज्य-महल को नष्ट करती है। १३२. और चौरौं का जोर जमीन पर ज्यादा हो जायेगा, ठग बढ जावेंगे। माता पुत्र को और स्त्री पति को त्याग देगी। * १३३. पानी कम पढेजा। नाज वगेरह सरसों का नाश होगा | यह उत्पात इस तरह की उल्का पड़ने से होता है।
अब गंधर्वनगर फल कहते हैं। १३; संधर्वजगर उसे कहत हा आकाश में पुदगलाकार नगर के स्वरूप बनैं । अगर पूर्व दिशा मैं गंधर्वनगर दीरौ तौ पश्चिम देश का नाश होगा 1 १३५. यदि दक्षिण दिशा में गंधर्वनगर दिखे तो राजा का नाश कहै । *और यदि पश्चिम दिशा में दिखाई दे तो पूर्व दिशा का नाश जल्दी होगा।
१३६. उत्तरदिशा में दिखाई दे तो उत्तर ही दिशावालों का नाश करता। है और यदि हेमंत ऋतु में दिखाई दे तौ रोगभय करता है। वसन्तऋतु का देखा गंधर्वनगर सुकाल करता है। १३७. गीषम ऋतु का देखा हुआ नगर नाश करता है और वर्षाकाल में
गंधर्वनगर दीदै तौ पानी कम होगा और दुष्काल होगा । यदि शरद * ऋतु में देखा जावै तो मनुष्यों को पीडा करता है।
१३८. बाकी ऋतुकाल में अगर ऐसा हो या गंधर्वनगर दिखाई दे तौर * उनका फल छह महीने भीतर राजा का नाश होगा |
१३९. रात्रि को नजर आवै तौ देश नाश करेगा । कुछ रात्रि रहते नजर र आवै तौ चोरभय और राजा का नाश करता है। ११४०. यह ऊपर जो कालनियत करे है उनके सिवाय अगर कोई काल