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निमित्तशास्त्रम्
निमित्तशास्त्रम्
( अज्ञातकर्तृक भाषानुवाद)
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मंगलाचरण दोहा
ऋषभ जिनेश्वर को नमूं, करन शुद्ध सम्यक्त्व |
तीर्थंकर के न्हयनसों, पावत सुख अव्यक्त ॥ सोरठा
वन्दौ गुरु पदपद्म, कृपायतन भवदु:खहर | महाकर्मतम पुंज, जासु वचन रवि उदयसम ॥ दोहा
सरस्वति को नमन करि, प्राकृत गहन विचार । भाषा शास्त्र निमित्त की, कथं बुद्धि अनुसार ॥
वह ऋषभदेव स्वामी कि जिन्होंने इस अनंत संसार को इन्द्रिय
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१.
२.
दमन का उपदेश देकर ध्यान में मग्न हो गये, सदाकाल जयवंते रहो। अब मैं ऋषिपुत्र नामका वर्द्धमान तीर्थंकर जो केवलज्ञान रूपी, लब्धि करके युक्त है, उनको नमस्कार करके निमित्तशास्त्र को प्ररूपण
करता हूं ।
३. यह निश्चय है निमित्तशास्त्र तीन प्रकार से जैसा कि ज्ञानियों ने निरूपण किया है में ऋषिपुत्र कहता हूं ।
४.
जो पृथ्वीपर देखा जावै, आकाश मैं दिखाई दे और जिसका शब्द ही सुनाई दे । इस तरह से निमित्तशास्त्र के तीन भेद है यह ज्ञानबुद्धि से जानना चाहिए ।
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५. जी चारण मुनियों नैं देखा और ज्ञान से शुभाशुभ वर्णन किया, और पंडितों नैं भी वैसा ही वर्णन किया। उसी ही निमित्तज्ञान को तीन प्रकार जो उपर बतला चुके हैं, कहता हूँ ।
६.
सूर्योदय पहले समय आकाशसंबंधी निमित्त बतलाते है। सूर्य उदय के पहले और सूर्य अस्त के पश्चात जो चंद्र ग्रहों वगैरह काराता है,