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________________ · श्वेतांबराचार्य यशोविजयजी उपाध्यायने अपने ' द्रव्यगुणपर्यय रासा' [गुजराती ] में देवसेनके नयचक्रका कई जगह उल्लेख किया है और उक्त रासेके आधारसे ही लिखे हुए द्रव्यानुयोगतर्कणा नामक संस्कृत ग्रन्थमें भी उक्त उल्लेखोंका अनुवाद किया है । एक उल्लेख इस प्रकार है:-- नयाश्चोपनयाश्चैते तथा मूलनयावपि । इत्थमेव समादिष्टा नयचक्रेऽपि तत्कृता ॥८॥ - एते नया . उक्तलक्षणाश्च पुनरुपनयास्तथैव द्वौ मूलनयावपि निश्चयेनेत्थममुना प्रकारेणैव नयचक्रेऽपि दिगम्बरदेवसेनकृते शास्त्रे नयचक्रेपि तत्कृता तस्य नयचक्रस्य कृता उत्पा. दकेन समादिष्टं कथितं । एतावता दिगम्बरमतानुगतनयचक्रग्रन्थपाठपठितनयोपनयमूलनयादिकं सर्वमपि सर्वज्ञप्रणीतसदागमोक्तयुक्तियोजनासमानतंत्रत्वमेवास्ते न किमपि विसंवादितयास्तीति *।" ___ उक्त ' तर्कणा ' में जो नयोंका स्वरूप दिया है, वह बि. लकुल ' नयचक्र' का अनुवाद है और इसे स्वयं ग्रन्थकर्ता भोजसागरने स्वीकार किया है । इससे निश्चय हो जाता है कि उपाध्याय यशोविजयजी और तर्कणाके कर्ता भोजसागर इसी नयचक्रको देवसेनका रचा हुआ समझते थे। * देखो रामचंद्रशास्त्रमालाद्वारा प्रकाशित ' द्रव्यानुयोगतर्कणा' अध्याय ८ श्लोक ८ पृष्ट ११५ ।
SR No.090298
Book TitleNaychakradi Sangraha
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBansidhar Pandit
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1920
Total Pages194
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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