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णमोकार ग्रंथ
__ॐ ह्रीं अहं धर्मदेशकजिनाय नमः ॥१००१॥ धर्म का उपदेश देने से आप धर्मदेशक कहलाते हैं ॥१००१
ॐ ह्रीं अई शुभयवे नमः ॥१००२|| मोक्षरूप शभ को प्राप्त करा देने से प्राप शभंय है।॥१००२॥
ॐ ह्रीं अहं सुखसाद्भूताय नमः ।।१००३। सुख को अपने स्वाधीन करने से पाप सुखसाद्भूत कहलाते हैं ।।१०.३॥
ॐ ह्रीं अहं पुण्यराजये नमः ॥१००४।। पुण्य का राशि (समूह) होने से प्राप पुण्क राशि कहे जाते हैं ॥१००४॥
ॐ ह्रीं अहं अनामयाय नमः ॥१.०५॥ रोग रहित होने से आप अनामय है ।।१००५|| ॐ ह्रीं ग्रह धर्मपालाय नमः ।।१००६।। धर्म की रक्षा करने से आप धर्मपाल हैं ॥१००६।। ॐ ह्रीं अहं जगत्पालाय नमः ।।१००७।। जगत् की रक्षा करने से आप जगत्पाल हैं ।।१००७॥
ॐ ह्रीं अहं धर्मसाम्राज्यनायकाय नमः ।।१००८॥ पाप धर्मरूप साम्राज्य के स्वामी होने से धर्मसाम्राज्यनायक कहलाते हैं ।।१००८||
इति अष्टोत्तर सहस्रनाम समाप्तः ।।
वाहा
वश त प्रष्टोत्तर कहे सार्थक श्री जिननाम ।
पड़े सुने जे भविक जन पाये सौख्य ललाम ॥१॥ इस प्रकार महा तेजस्वी श्री जिनेन्द्र देव के विद्वान् लोगों ने ये एक हजार आठ नाम संचय किये हैं। जो पुरुष इन नामों का स्मरण करता है उसकी स्मृति बहुत ही पवित्र हो जाती है।
इति श्री अहंद् भगवद् गुण वर्णन समाप्तः ॥१॥ अर्थ निकल परमात्मा (सिद्ध ) गुण प्रारम्भः ।। कैसे है सिद्ध भगवान् ? वे अष्टकमों के प्रभाव से प्रादुर्भाव सम्यक्त्वादि प्रष्ट गुणों से सुशोभित हैं।
प्रष्ट गणनाम श्लोकः सम्यक्त्वदर्शनं मामम तबीयमद्भुतम् । सौषम्यावणायाम्यावाधाः सहागुरुलघुत्वकाः ॥१॥
सोरठा समकित वर्शन शान, प्रगुरु लघुप्रवगाना।
सूक्ष्मवीरनवान, निरावाषगुणसिद्ध के ॥२॥ अर्थात् सम्यक्त्वादि अष्ट गुण सिद्ध भगवान् के मोहनीयादि कर्म के प्रभाव से प्रादुर्भूत व्यवहार मात्र कहे हैं। निश्चय से तो अनंतगुण हैं।
भावार्थ-मोहनीय कर्म के प्रभाव से क्षायिकसम्यक्त्व प्रगट हुा ।।१।। दर्शनावरणी कर्म के प्रभाव से केवलदर्शन प्रगट हुा ।।२।। और ज्ञानावरणी के दूर होने से केवलज्ञान प्रगट हुमा ।।३।। पानराय कर्म के प्रभाव से अनंत वल प्रगट हुा ।।४।। प्रायु कर्म के प्रभाव से प्रावगाहनत्व गुण प्रगट हुआ ।।५।।