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________________ णमोकार प्रेम ॐ ह्रीं पहं बंध मोक्षशाय नमः ॥६३३|| बंध और मोक्ष का स्वरूप जानने से आप बंध मोक्षश हैं ।।६३३॥ ॐ ह्रीं अहं जिताक्षाय नमः ॥९३४॥ श्राप इन्द्रियों को जीतने से जिताक्ष हैं ||३४।। ॐ ह्रीं अर्ह जितमन्मथाय नमः ।।२३५१: मानदेय को होने से धातिमन्मथ कहलाते हैं ।।६३५१. ॐ ह्रीं अहं प्रशांतरसशेलुषाय नमः ॥६३६॥ शान्तरूपी रसामृत का पान करने से आप प्रशान्त रसशैलूष कहलाते हैं ॥६३६॥ ॐ ह्रीं ग्रह भव्यपेटकनायकाय नमः ।।६३७|| भव्य जीवों के समुदाय के नायक होने से प्राप भव्यपेटकनायक कहलाते हैं ।।६३७|| ॐ ह्रीं अर्ह मूलकर्ताय नमः ॥६३८॥ धभं के मुख्य प्रकाशक होने से आप मूलकर्ता हैं ॥६३८| ॐ ह्रीं महं जगज्योतिषे नमः ॥६३६॥ अनन्त ज्योति स्वरूप होने से प्राप जगज्योति हैं ॥३६॥ ॐ ह्रीं अहं मलघनाय नमः ।।६४०।। रागद्वेषादि मल को नाश करने से आप मलम्न हैं ||१४०॥ ॐ ह्रीं अह मूल कारणाय नमः ॥१४१॥ पाप मोक्ष के मूल कारण होने से मूलकारण हैं ॥१४॥ ॐ ह्रीं अहं प्राप्ताय नमः ॥९४२॥ यथार्थ वक्ता होने से आप प्राप्त हैं ।।९४२।। ॐ ह्रीं अह वागीश्वराय नमः ।।६४३।। स्व प्रकाश की वाणी के स्वामी होने से आप वागीश्वर कहलाते हैं ।।६४३॥ ॐ ह्रीं प्रहं श्रेयसे नमः ।।६४४|| कल्याणस्वरूप होने से प्राप श्रेयान् हैं ।।६४४|| ॐ ह्रीं अहं श्रायसोक्तये नमः ।।६४५।। मापकी वाणी कल्याणरूप होने से माप श्रायसोक्ति कहलाते हैं ।।६४५॥ ॐ ह्रीं अहं निरुक्तवाचे नमः ॥६४६।। निःसन्देह वाणी होने से प्राप निरुक्तवाक कहलाते ॐ ह्रीं अहं प्रवक्त्रे नमः ।।६४७।। सबसे उत्तम वक्ता होने से पाप प्रवक्ता हैं ||९४७॥ ॐ ह्रीं अहं वचसामीशाय नमः ॥९४८॥ सब प्रकार के वचनों के स्वामी होने से माप वचसामीश हैं ।।६४८॥ ॐ ह्रीं अहं मारजिते नमः ॥६४६॥ कामदेव को जीतने से आप मारजित है ॥६४६॥ ॐ ह्रीं प्रहं विश्वभाविदाय नमः ॥६५॥ संसार के समस्त पदार्थों को जानने से अथवा समस्त प्राणियों के अभिप्राय जानने से माप विश्वभाववित् कहलाते हैं ।।६५०॥ ॐ ह्रीं प्रहं सुतनुवे नमः ।।६५१।। उस्कृष्ट शरीर को धारण करने से पाप सुतनु है ।।५।। ॐ ह्रीं अहं तनुनिर्मुक्ताय नमः ।।६५२।। शरीर रहित होने से पाप तनुनिर्मुक्त हैं ||६५२।। ॐ ह्रीं महं सुगतये नमः ॥९५३॥ पास्मा में तल्लीन होने से अथवा सम्यग्ज्ञान धारण करने से माप सुगत हैं ॥१५३॥ ॐ ह्रीं महं हतदुनंयाय नमः ।।९५४।। मिथ्यावृष्टियों की खोटी नयों का नाश करने से भाप हतदुर्मय हैं ॥१५४।।
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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