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________________ णमोकार पंथ हैं। जो सिंह के समान पराक्रमी, गज के समान स्वाभिमानी वा उन्मत्त, बल के समान भन्न प्रकृति मृग के समान सरल, पशु के समान निरीह गौचरीवृत्ति करने वाले, पवन के समान निर्सग तथा बिना किसी रूकावट के विचरण करने वाले, सूर्य के समान तेजस्वी, समस्त तत्वों के प्रकाशक, समुद्र के समान गम्भीर और सुमेर के समान उपस और पारंप पाने पर प्रकम्प अथवा निश्वल रहने वाले, चन्द्रमा के समान शान्तिदायक, मणि के समान प्रभापुन्ज पृथ्वी, के समान सहनशील, सर्प के समान अनियत प्राश्रय में रहने वाले, आकाश के समान निरालम्बी अथवा निर्भीक और सर्वदा मोक्ष का अन्वेषण करने वाले साधु परमेष्ठी होते हैं । जो अपने चिदानन्द स्वरूप में तन्मय रहते हैं प्रात्म-निरीक्षण एवं निदा पहरे द्वारा अपने दोषों को दूर करने का प्रयत्न के-ते हैं। जो समता भाव के धारक हैं, जिनकी प्रशान्त मुद्रा बिना किसी उपदेश के प्रात्मा के शान्त स्वरूप का उपदेश देती है। ऐसे वे सर्व साधु नमस्कार करने योग्य हैं मैं उनकी वन्दना करता हूं। इस तरह पंच परमेष्ठी का यह स्वरूप णमोकार मंत्र के पदों में अन्तनिहित है। उसका ध्यान और अध्ययन प्रात्मशान्ति का प्रधान कारण है। अतएव उसका चिन्तन वन्दन करना परम कर्तव्य है । अपराजित महामन्त्र की महत्ता जिसका पाट मात्र करने से कार्य की सिद्धि होती है उसे मन्त्र कहते हैं। और जिसका जप तथा हवन आदि के द्वारा कार्य सिद्ध करना पड़ता है उसे विद्या कहते हैं। मन्त्र और विद्य। में भेद है क्योंकि विद्या की अधिष्ठात्री देवता स्त्री है और मन्त्र का अधिष्ठाता देवता पुरुष है। यही दोनों की भिन्नता का निर्देश है । मन्त्र देवाधिष्ठित होते हैं और साधक मंत्र की साधना द्वारा उन अधिष्ठाता देवों को वश में करने का प्रयास करता है। इस प्रयत्न में वही सफल हो सकता है जो अपने को शक्तिशाली और पात्मविश्वासी मानता हो। अथवा जो अपने को देवता से भी अधिक बलवान अनुभव करता है और यह समझता है कि देवता मेरा कुछ बिगाड़ नहीं कर सकता। किन्तु जो देवता के नाम से घबराते हैं और अपने को उनका दास समझते हैं ऐसे पुरुष उक्त कार्य में कभी सफल नहीं हो सकते हैं। प्रस्तुत मंत्र मंत्रशास्त्र की दृष्टि से विश्व के समस्त मन्त्रों से अलौकिक है । इसकी महानता को वे ही समझते हैं जिन्होंने निष्काम होकर इसका आराधन कर सिद्धि या फल प्राप्त किया है। दुनिया की ऐसी कोई ऋद्धि सिद्धि नहीं है जो इस मन्त्र के द्वारा प्राप्त न की जा सके । इस मन्त्र की महत्ता को प्रगट करते हुए लिखा है कि यह पंच नमस्कार मन्त्र सब पापों का नाश करने वाला है और सब मंगलों में पहला मंगल है। ऐसो पंच णमोकारो सम्वपावप्पणासमो। मंगलाणं च सवेसि पलम हवाइ मंगलं ।। इतना ही नहीं किंतु यह नमस्कार मंच संसार में सारभूत है। तीनों लोकों में इसकी तुलना के योग्य कोई दूसरा मन्त्र नहीं है। यह समस्त पापों का शत्रु है । संसार का उच्छेद करने १ घडला पुस्तक १ पृ. ५२
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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