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गमोकार मंच
कुछ प्रारम कल्याण भी न करने पाई। हे माता अब तक आपकी सेवा को सो उसमें जो भी भूल हुई हो उसे क्षमा करो और कृपा कर शीघ्र ही प्राज्ञा दो अब विलम्ब करने से अमूल्य समय जाता है। तब कुन्दप्रभा बोली-हे पुत्री दो चार दिन तक और भी धैर्य रखो । यदि इतने में वह न आयेगा तो मैं और तू साथ साथ दीक्षा ले लेगें । मुझे आशा है कि वह धीर वीर दो चार दिन में अवश्य प्रायेगा ।
तब मैना सुन्दरी बोली - माताजी यह तो सत्य है कि स्वामी अपने वचन के पक्के हैं, परन्तु कर्म बड़ा बलवान है । क्या जाने स्वामी को कौन सी विपत्ति या पराधीनता आ गई हो जिससे नहीं पाए । प्रब बिना सन्देश के कैसे निश्चय कर सकती हूं कि स्वामी शीघ्र ही इतने दिनों में पायेंगे । फिर माता मी जब पाने की कुछ राबर ही नहीं है तो फिर क्यों अपना समय व्यर्थ बिताऊ।
इस प्रकार सास बहू को बातें हो रही थीं। श्रीपाल जी अव तक तो चुपके से सुनते रहे थे परन्तु अब उनसे न रहा गया तब वे तत्काल ही कपाट खुलवाकर भीतर गए और जाकर माता को नमस्कार किया। माता ने हपित होकर ग्राीवाद दिया। पश्चात श्रीपाल की दष्टि मै पड़ी तो देखा कि वह कोमलांगी अत्यन्त क्षीण शरीर हो रही है। तब वे निज महा को गए। वहाँ पहुंचते ही मैना सुन्दरी ने स्वामी के चरणों में नमस्कार किया । बहुत दिनों के अनन्त र ग्राज दोनों के विरह दुख की इति श्री हुई। दोनों का सुख सम्मिलन हुआ। एक वो देखने से दूसरे को परमानन्द हुमा । कुशल प्रश्न के अनन्तर श्रीपाल जी माता कुन्दप्रभा और मैनासुन्दरी दोनों को अपने कटक में ले गये और वहां जाकर माता को सिंहासन पर बिठाकर निकट ही मैनासुन्दरी को माता के सिंहासन के नीचे स्थान दिया । तत्र स्थित रयणमंजूषा प्रादि अन्यान्य स्त्रियों ने स्वामी के मुख से सम्बन्ध जान कर यथाक्रम सब ने सास कुन्दप्रभा और मैनामुन्दरी को यथायोग्य नमस्कार करके बहुत विनय सत्कार किया 1 पश्चात श्रीपाल जी ने मंनासुन्दरी को सब कटक दिखाया। माता की प्राज्ञा लेकर मैनासुन्दरी को पाठ हजार रानियों में मुख्य पटरानी का पद प्रदान किया। पट्टाभिषक होने पर रयणमंजुषा गुणमाला चित्ररेखा प्रादि समस्त पाठ हजार रानियाँ मैनासुन्दरी की सेवा करने लगी। पश्चात मैनासन्दरी बोली-हे स्वामिन आप तो दिर्गत विजयी हो अतएव मेरी इच्छा है कि मर पिता का भी युद्ध में मान भंग करना चाहिए और वह कन्धे पर कुल्हाड़ी रखे कम्बल ओढ़ व लंगोटी लगाकर प्रावें तभी छोड़ना चाहिए तो मेरा चित्त शांत होगा क्योंकि उन्होंने कर्म पर वाद विवाद किया था।
___ सुनकर श्रीपाल बोले-हे कांसे तेरे पिता ने मेरा बड़ा उपकार किया है अर्थात मैं जब सर्व स्वजनों से वियोगी हुमा फिर रहा था तब उन्होंने मेरी सहायता की थी और उपकारी पर अपकार करना कृतघ्नता है । मुझसे यह कार्य होना ही योग्य नहीं है।
तब मैनासुन्दरी. बोली-हे स्वामी मैं दूप से नहीं कहती हूं परन्तु यदि कुछ चमत्कार दिखामोगे तो उनकी जिनधर्म पर दृढ़ श्रद्धा हो जाएगी, यही मेरा अभिप्राय है 1
श्रीपाल प्रिया के ऐसे वचन सुनकर प्रत्यन्त हर्षित हुए और तुरन्त ही एक दूत बुलाकर उसे सब भेद समझाया पौर तत्काल ही राजा पदुपाल के पास भेजा सो दूत प्राज्ञानुसार शीघ्र ही राजद्वार पर जा पहुंचा और द्वारपाल के हाथ अपना संदेश भेजा। राजा ने उसे पाने की प्राशा दी सो उस दूत मे सन्मुख जाकर राजा पदुपाल को यथायोग्य नमस्कार किया। राजाने कुशल पूछी तब दूत बोला"महाराण ! एक पत्यन्त बलवान पुरुष कोटीभट्ट भनेक देशों पर विजय करते हुए वहां के राजाओं को