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________________ णमोकार ग्रंथ १८३ उपाय की चिंता में क्षीण शरीर होने लगा। एक दिन वह दुष्टमनी रयणमंजूषा का अवलोकन कर दुर्तित हो गया और गिर पड़ा जिमसे सन्न जहानों में बड़ा कोलाहल मच गया श्रीपाल भी वहाँ पर दौड़े पाए । आते ही धवल सेठ को मुछिन पड़े हुए देख गोद में उठा लिया और शीतल उपचार करके जैसेतैसे उनकी मूर्छा दूर की। जब वह कुछ सचेत हुआ तो श्रीपाल ने उसको वेदना से बहुत पौडिन देखा। तव श्रीपाल ने बहुत मिष्ठ नन वचनों से पूछा-'हे तान! आपको क्या वेदना है सो कृपा कहिये जिससे उसका प्रतिकार किया जाए ।" तब सेठ ने अंतरंग कपट रख बात बनाकर कहा ___"हे वीर ! मुझको वात रोग है । सो दस पांच वर्ष में कभी-कभी अकस्मात मुझे इस रोग का आक्रमण हो जाया करता है । औषधि सेवन करने से साता हो जायगी। आप चिन्ता न करें।" तब श्रीपाल उनको धैर्य देकर और अंगरक्षकों को ठीक सेवा सुश्रूषा करने की ताकीद करके अपने निवास स्थान पर चले पाए 1 पश्चात् मन्त्रीगणों ने उससे पूछा-“सेठ जी ! कृपा करके कहिए पाएको क्या रोग है और इसका क्या प्रतिकार किया जाय जिससे आपको माता हो ।" तब धवल सेठ ने लगशून्य होकर कहा कि-'हे मन्त्रीगणो मुझे और कोई रोग नहीं है, केवल विरह की पीड़ा है सो यदि वह कोमलांगी मझे नहीं मिलेगी तो मेरा जीवित रहना महा काष्ट माध्य है। अनाव तुम लोग मेरा जीवन चाहते हो तो जिस प्रकार बने उसी प्रकार उसे प्राप्त करने का उपाय शीव्र हो की जिा।" मन्त्रियों को सेठ के ऐसे निद्य वचन सुनकर बहुत धृणा हुई । वे विचारने लगे कि सेठ की बुद्धि नष्ट हो गई है। इस कुबुद्धि का समस्त फल समस्त संघ का क्षय होना प्रतीत होता है। यह मोच कर मंत्रीगणों ने शास्त्रीय पाख्यानों तथा युक्तियों द्वारा बहुत कुछ रामझाया परन्तु उसके हृदय में एक वाक्य भी प्रवेश न कर सका जिस प्रकार चिकने घड़े पर जल नहीं ठहरता । वह बारम्बार उन्हीं वाक्यों को कहता रहा। निदान मंत्रियों ने कहा---''सेठ जी ! देखो हठ छोड़ो। हम तो प्रापके प्राज्ञाकारी हैं1 जैसी आपकी प्राज्ञा होगी वैसा ही करेंगे परन्तु स्वामी के हित अहित और लाभ हानि की मुचना स्वामी को कर देना हमारा धर्म है। हम लोगों की बात पीछे याद करोगे।' परन्तु जब देखा कि सेठ नहीं मानता तब वे बोले-"है सेठ ! इसका केवल एक ही उपाय है कि मरिजया को बुलाकर साध लिया जाय कि एकाएक कोलाहल मचा दें कि मागे न मालम जानवर है या चोर है। या कुछ दैवी चरित्र है। दोड़ो उठो सावधान होयो । सो इस आवाज से श्रीपाल जब मस्तूल पर चढ़ कर देखने लगेंगे। तब मस्तूल (जहाज का खंभ जिस पर चढ़ कर दूर तक समुद्र में देख सकते हैं) काट दिया जाय । इस तरह वे सगुट में गिर जायगे तथा प्रापका मनवांछित कार्य सिद्ध हो जाएगा अन्यथा उसके रहते उसकी प्रिया को पाना ऐसा है जैसा कि अग्नि में से वर्फ निकालना है।" मन्त्रियों का यह विचार उस पापी को अच्छा मालूम हुआ और उसने तुरन्त मरजिया (खबर देने वाले) को बुलाकर सब प्रकार सिखा दिया । सो ठीक है-'कामी पुरुष स्वार्थ वश आने वाली आपत्तियों का विचार नहीं करते।' निदान एकदिन अवसर पाकर मरजिया ने एकाएक चिल्लाना प्रारम्भ कर दिया--' वीरो सावधान हो जायो सामने भय के चिन्ह दिखाई दे रहे हैं न मालूम बड़ा जलजन्तु है या चोरदल अथवा ऐसा ही कोई दैवी चरित्र है. तूफान है या भंवर है कुछ समझ नहीं पाता।" इस प्रकार उसके चिल्लाने से कोलाहल मच गया। सब लोग जहां तहां क्या है करके चिल्लाने पौर पूछने लगे। क्या है इतने में श्रीपाल जी को खबर लगी सो वे तत्काल ही पाए और कहने लगे"मलग हो 'यह क्या है' कहने का समय नहीं है । चलकर देखना और उसका उपाय करना चाहिए।"
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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