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________________ णमोकार चंय प्रानत, प्राणत तथा मारण, अच्युत युगलेन्द्र के अभ्यन्तर पारिपद अढ़ाई सौ, मध्यम पारिषद पाँच सौ बार बार पारिषद एक एक हजार हैं। प्रथम जो इन्द्रों के नगरों का प्रमाण कहा है उन एक एक नगर के पांच पांच कोट है । मागे उन नगरों के कोटों का अन्तराल कहते हैं पहले दूसरे कोट के बीच अनाराल तेरह लाख योजन दूसरे तीसरे के बीच नरेगठ लाख योजन. तीसरे चौथे के बीच चौसठ लाख योजन और पांचवे के बीच चौरासी लाख योजन अन्नगल हैं प्रयम अन्तराल में सेना के नायक अंगरक्षक देव दूसरे अन्तराल में तोन जाति के पारिगद देव तीसरे अन्तराल में समानिक देव पोर चौथे सन्दराल में 4 ग्रादि के ऊपर प्रारूद होने बाल प्रारोहक प्रारंभ योग्य और किल्बिधिक ग्रादि अपने अपने योग्य मन्दिरों में निवास करने अपन प्रपन याग्य मान्दरा में निवास करते है। उस पंचम का सपनाम हजार योजन के अन्तराल पर जाकर चारों दिशाओं में महा आनन्दकारो चार भन्दन वन है। ये नन्दन बन पद्य द्रह समान पचास हजार योजन लम्ब और पांच सौ योजन चौड़े है। उन चाराधनों में प्रशाक सप्तच्छंद, चंपक और ताम्रयेचार चैत्य वक्ष हैं। उन चैत्य वृक्षों के चारों पाव भागों में पत्यकासन जिन प्रतिमा विराजमान है। उ मेरस बारम्बार नमस्कार हो। उन बन खण्डों में बहुत से योजन परे पूर्वाद दिशामो में साड़ बारह मारव योजन प्रमाण विस्तार वाले सोम, यम, वरुण और कुवेर--- इन चार लोकपालों कना । जन लोकपालों के नगरों के निकटवर्ती प्राग्नेय आदि विदिशाओं में एफ. लक्ष याजन प्रमाण लन्ने चार कामा, कामिनी, पद्मगंधा और अलंक्षा नाम की धारक चार गणिका महत्तरियों के नगर है। इमा प्रकार अन्य कल्पों की भी रचना जाननी चाहिए। आगे देव तथा देवांगनाओं के मन्दिरों की ऊंचाई लम्बाई तथा चौड़ाई व प्रमाणपत सौधर्म युगल देवों के मदिरों का उदय छह सौ योजन और देबियों के मन्दिरो का उदय पाच सो योजन, सनत्कुमार युगल के देवों के मन्दिरों का उदय पांच सौ.योजन और देवियों क मन्दिर का उदय साढे चार सौ योजन, ब्रह्म युगल के देवों के मंदिरों का उदय साढ़े चार सौ योजन और देवियों के मंदिरों का उदय चार सौ योजन, लांतव युगल के देवों के मंदिरों का उदय चार सौ योजन और देवियों के मंदिरों का उदय साढ़े तीन सौ योजन, शुक्र युगल के देवों के मंदिरों का उदय साढ़े तीन सौ याजन और देवियों के विमान का उदय तीन सौ योजन, सतार युगल में देवों के मंदिरों का उदय तीन सौ योजन और देवियों के विमान का उदय अढ़ाई सी योजन, प्रानत मादि कल्प चतुष्क में देवों के मंदिरों का उदय पढ़ाई सौ योजन और देवियों के विमान का उदय दो सौ योजन है। इनकी लम्बाई तया चौड़ाई अपने अपने विमान के उदय से पांचवें भाग लम्बाई तथा दसवें भाग का प्रमाण चौडाई होती है। नव ग्रेवैयक के प्रथम त्रिक में देवों के मंदिर का उदय दो सौ योजन, लम्बाई तीस योजन और चौड़ाई पन्द्रह योजन है। दूसरे त्रिक में देवों के मंदिरों का उदय डेढ़ सौ योजन, लम्बाई तीस योजन और चौड़ाई दस योजन है और तीसरे त्रिक में देवों के मंदिरों का उदय शत योजन, लम्बाई बीस योजन और चौड़ाई दस योजन है। नव अनुत्तर के देवों के विमान का उदय पच्चीस योजन, लम्बाई दस योजन और चौडाई पांच योजन है और सर्वार्थ सिद्धि के देवों के मंदिरों का उदय पच्चीस योजन, लम्बाई पच्चीस योजन और चौड़ाई पढ़ाई योजन है। प्राये इन्द्रों की देवियों का प्रमाण कहते हैं
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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