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________________ गमोकार ग्रंथ इस प्रकार हनुमान ने निडर होकर रावण को खूब फटकारा। तब रावण ने क्रोधाग्नि से प्रज्वलित होकर अपने नौकरों से कड़क कर कहा -बड़े आश्चर्य की बात है कि यह एक साधारण मनुष्य सभा में अपशब्द व कटुक शब्दों के द्वारा कितना अपमान कर रहा है और तुम खड़े हुए उसके मुख की मोर देख रहे हो । शीघ्र ही इसका मस्तक छेदन क्यों नहीं कर देते? स्वामी को प्राज्ञा पाते ही पेवक गण हनुमान पर टूट पड़े, परन्तु फिर भी उस महावीर युद्ध कला कुशल हनुमान का वे क्या कर सकते थे? हनुमान झट से प्राकाश में चले गये और रावण की इस दुष्टता पर क्रोधित हो समस्त लंकापुरी में अग्नि लगा दी। तदनन्तर सीता के पास पहुंचे और उनसे कुछ अभिज्ञान रूप बस्तु देने के लिए प्रार्थना को। तब पतिषियोगिनी सीता ने अपना चूहारत्त देकर और रामचन्द्र के लिए कुछ शुभ समाचार कह कर हनुमान को विदा किया। हनुमान जनकनन्दिनी को नमस्कार कर उनसे प्राशा लेकर शीघ्र ही प्रणाम कर सागर लोध सुग्रीव की राजधानी किष्किधापुरी में राम के निकट पाकर उपस्थित हुए। हनुमान ने सीता का अभिशान रूप चूडारल सम्मुख रखकर सीता के कहे हुए सब शुभ समाचार कह सनाए और भी रामचन्द्र ने सीता सम्बन्धी जो भी वृत्तांत पूछा उसका यथोचित उत्तर देकर उनके संतप्त हदय को शान्त किया। तदनन्तर जब यह वत्तांत सग्रीव प्रादि को मालम हा तब वह मिलकर विचारने लगे कि अब हमको क्या करना चाहिये ? रावण तीन खंड का स्वामो है। इसी से उसके यहाँ चक्ररत्न भी प्रकट हो गया है जो सब सुखों का कारण और शत्रु पक्ष का मान मदन करने वाला समझा जाता है। जिसने अपनी भुजाओं के बल से इन्द्र, वरुण, यम और वैश्रवण आदि बड़ेबड़े प्रतापी राजामों के अभिमान को नष्ट कर अपने वश में कर लिया है, पृथ्वी पर कौन ऐसा राजा है जो उसकी आज्ञा का प्रनादर कर सके ? अर्थात् उसकी प्राज्ञा को सब राजा-महाराजा स्वीकार करते है। जिसके कुम्भकरण और विभीषण जैसे महापराक्रमी भाई और इन्द्रजीत, मेघनाद आदि बहुत से पराक्रमी पुत्र हैं, जो समुद्र से घेरे हुर राक्षस द्वीप समूह के अन्तर्गत चारों ओर से विशाल प्राकार से युक्त लंका नामक अपनी राजधानी में रहते हुए निरावाध तीन खंड का एक छत्र राज्य करता है, ऐसा प्रतापी त्रिखडेश रावण कैसे जीता जा सकेगा? सीता कैसे लाई जायेगी। कैसे हम रामचन्द्र को संतुष्ट कर सकेगें ? हम लोगों ने रामचन्द्र की भोर होते हुए तो कुछ भी नहीं विचारा, परन्तु देखो, रावण जब ये वत्तांत सुनेगा तो कितना क्रोधित होना प्रौर क्रोधाग्नि से प्रज्वलित होकर हमारा अपकार किये बिना कैसे चूकेगा? हमें अभी से मालूम नहीं है कि रामचन्द्र और लक्ष्मण मितने पराक्रमी वीर हैं और जब तक इनकी शक्ति का ठीक परिचय न हो जाए तब तक अपनी विजय की प्राशा भी बंध्या के पत्र प्राप्ति की अभिलाषा के समान व्यर्थ है प्रतएव सबसे प्रथम इनकी शक्ति का अनुमान करना चाहिये और इस का ठीक निर्णय कोटि शिला के उठाने पर हो सकेगा क्योंकि कोटि शिला वही उठा सकता है जो नारायण हो और वही प्रतिनारायण का मारक होता है । रावण प्रतिनारायण है यह तो निसंदेह निश्चित है। अब यदि इनका नारायण होना निश्चित हो जाये तो इनके साथ में हमारी कोई हानि नहीं, नहीं तो रावण के द्वारा इनका और हमारा वृथा ही सर्वनाश होगा । विद्याधरों के इस विचार को विराषित ने जाकर श्री रामचन्द्र से कह सुनाया। यह सुनकर लक्ष्मण ने बड़ी निर्भीकता से कहा-"कि ये लोग क्यों कायरता दिखाते हैं ? सब एकत्रित होकर पंचशिला के पास चलें और अपने इस संदेह का निवारण कर से मैं सब के समक्ष कोटिशिला को उठाकर अपनी शक्ति का परिचय करा दूंगा।" लक्ष्मण के कयनानुसार वानरवंशो सब एकत्रित होकर शुभ महूर्त में लक्ष्मण के साथ करेटि
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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