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णमोकार ग्रंथ
मंगलाचरण
आकृष्टि सुर संपदांविषधते मुक्ति श्रियो वश्यता, उच्चाट विपदा चतुर्मतिभुवां विद्वेषमात्मनसाम् । स्तंभं दुर्गमनं प्रति प्रयततो मोहस्य संमोहनम्, पायात्पंच नमस्क्रियाक्षरमयी साराधना देवता ॥
णमो अरहताणं । णमो सिखाणं । णमो आइरियाणं । णमो उवज्झायाणं । णमो लोए सव्व साहूणं ।
णमो प्ररहताण-प्ररहत भगवान् को मेरा नमस्कार हो। णमो सिद्धाणं-सिद्ध भगवान् को मेरा नमस्कार हो। णमो पाइरियाण-प्राचार्यों को मेरा नमस्कार हो।।
मो उवज्झायाण-उपाध्यायों को मेरा नमस्कार हो । णमो लोए सध्व साहूर्ण-लोक में जितने साधु हैं उन सबको मेरा नमस्कार हो। इस प्रकार भगवान् पंच परमेष्ठी को नमस्कार कर मागे उनके गुणों का पृथक्-पृथक् वर्णन किया जाता है।
अथ ऋमागत भी परहन्त भगवान् गुण वर्णन कैसे हैं वे परहन्त भगवान् ? ये अष्टादश दोष रहित एवं छियालोस गुण सहित है। अष्टावश दोष कौन से हैं ?