________________
फमोकार पर
हैं और दो मोड लिए भी होती है जैसे हल, इसमें तीन समय लगते हैं और तीन मोड़ा लिए भी होती है जैसे गौ का मुतना, इसमें चार समय लगते हैं। मोड़ वाली तीन प्रकार की गति संसारी जीव के होती है विग्रह गति में जीव एक या दो या तीन समय बिना आहार के रहता है और इससे अधिक रहकर फिर अवश्य नो कर्म वर्गणा रूप आहार ग्रहण कर लेता है । सारांश यह है कि जब तक वह जीव स्वाभाविक शुद्ध चैतन्य केवल ज्ञान को प्राप्त न करे तब तक अनादि कर्म संयोग से शरीर रूप प्रौर मतिज्ञान आदि विकल ज्ञान रूप रहता है।
प्रथ अजीव तत्व वर्णन __ इस प्रकार जीव तत्व का कथन करने के पाश्चात दूसरे अजीव तत्व का वर्णन करते हैं चतना रहित प्रर्थात अपने प्रयवा दूसरे के न देखने जानने की शक्ति को अजीव कहते हैं । वह अजीव जिनागम में पांच प्रकार के कहे गये है। यथा -- पुद्गल, धर्म, अधर्म, प्रकाश और काल ।
यह लोक सर्वत्र षट् द्रव्यों से भरा हुआ है । वह छः द्रव्य ऊपर कहे हुए पाँच प्रकार के अजीव और एक जीव द्रव्य है । इन पांच द्रव्यों में धर्म, अधर्म, आकाश, काल और पुद्गल प्रमूर्तिक पौर। पुद्गल द्रव्य रूपाणि गुण संयुक्त होने से मूर्तिक है इसमें शब्द, बंध, सूक्ष्मता, स्थूलता, संस्थान, भेद, यम, छाया, आताप और उद्योत प्रादि पर्यायें होती हैं। इसकी स्वाभाविक पर्याय परमाणु और स्वभाव गुण दो अविरोधी स्पर्श, रस, वर्ण, गंध ऐसे पांच हैं जो परमाणु में होते हैं। पुद्गल की वैभाविक पर्याय स्कंध और वैभाविक गुण संयुक्त स्पर्श से स्पर्शान्तर रस से रसान्तर आदि बीस हैं तथा पुद्गल द्रव्य संख्यात प्रसंख्यात, अनन्त प्रदेशी मूर्तिक परतन्त्र क्रियावान हैं । शरीर, मन, वचन, श्वास, निश्वास से जीव द्रव्य का उपकार करता है । भावार्थ-पाहार, वर्गणादि पांच तरह के पुद्गल समूहों से शरीरादि बनते हैं । तथा सुख दुःख और जीना-मरना. ये उपकार भी पुगलों के हैं क्यों सुख दुःख मरना भी कर्म रूप पुद्गलों के कारण से होता है। पुद्गल वर्गणा छ: प्रकार की हैं
(१) स्थूल स्थूल-जो खंड होकर सहज में न मिले ऐसे दुल पदार्थ जैसे पत्थर मिट्टी लकड़ी प्रादि ।
(२) स्थूल-जो खंड़ करने पर किसी चीज की सहायता के वैसे ही मिल जाए जैसे जल, तैल, दुग्ष मादि ।
(३) स्थलसूक्ष्म- जो देखने में बहुत मालूम हों परन्तु पकड़ने में न पा जैसे चांदनी, धूम, छाया प्रादि ।
(४) सूक्ष्म स्थल-जो नेत्रों से दृष्णिगोचर न होकर अन्य इन्द्रियों से जाने जावें जैसे शब्द, सुगन्ध, दुर्गन्ध प्रादि । ये नेत्रों के द्वारा देखने में नहीं पाते परन्तु अन्य इन्द्रियों द्वारा साक्षात् प्रगट होते हैं। कर्मवर्गणा अनेक प्रकार की है। यह इन्द्रियों को भी प्रतीत नहीं होती। बाँधा हुआ यह मात्मा प्रनादि काल से संसार में भ्रमण कर रहा है।
(५) सूक्ष्म-भनेक भाति की कर्म धर्गणा जो इन्द्रिय सान गोपर नहीं होती जिनसे बंधा हुमा मह पात्मा अनादि काल से संसार में भ्रमण कर रहा है।
(६) सूक्ष्म सूक्ष्म--- सबसे छोटा पुद्गल परमाणु जिसका फिर विभाग न हो सके। यह पुद्गल बज्य लोक के भीतर ही हैं। परमाणु नित्य पोर स्कंध परमाणु नाशवान है।