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________________ प्राक्कथन (हिन्दी अनुवाद) अपनी पूज्य माता मूतिदेवीजी की स्मृति के लिए साह शान्तिप्रसाद जी जन द्वारा संस्थापित भारतीय ज्ञानपीठ बनारस ने विद्धतापूर्ण प्रकाशनों की एक उत्साहवर्धक योजना हाथ में ली है। प्राचीन भारतीय संस्कृति के विशाल कृष्टि व कल्पना वाले सभी अंगों का प्रकाशन इस योजना के अन्तर्गत है तथा अब तक इस संस्था से संस्कृत, प्राकृत, पाली, आदि विभिन्न भाषाओं के कतिपय ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके है। इस योजना के सम्पादन के लिए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्कृत महाविद्यालय के सुयोग्य विद्वान् पं० महेन्द्र कुमार न्यायाचार्य, प्रधान सम्पादक के रूप में प्राप्त है। शानपीट से अब तक कई एक अन्य प्रकाशित हुए हैं और कई एक प्रकाशन के लिए तैयार है। वर्तमान ग्रन्थ में प्रसिद्ध कोशकार धनञ्जम को दो कृतियाँ सम्मिलित है। पहली नाममाला लाती है जिसमें पागलादी राज्यों का और दूसरो अनेकार्थ नाममाला, जिसमें अनेक अर्थबोधक शच्चों का संग्रह है। पहली कृति में २०० श्लोक है जब कि दूसरी कृति उससे काफी छोटो है। प्रथम कृति के सम्बन्ध में उल्लेखनीय विशेषता यह है कि इस पर लिखा गया अमरकोति का भाष्य पहले पन्नल प्रकाश में आ रहा है। अमरकोति ने नाममाला के प्रत्यक माखों की व्यत्पत्ति देकर स्पष्टीकरण किया है और अपनी दृष्टि में आए कुछ और पर्यायवाची शब्दों को शामिल कर दिया है। उनके भाष्य को वही सरणि पद्धति है जो कि अमरकोश की प्रसिद्ध टीका में क्षीरस्थाभी ने अपनायी है। सम्पूर्ण कृति का सम्पादन ख्यातनामा पण्डित शम्भुनाथ त्रिपाठी व्याकरणाचार्य सप्ततीर्थ ने बड़ी सावधानी से तथा प्रमाणों का उपयुक्त उद्धरण देते हुए किया है। उनकी टिप्पणियों का अध्ययन करने से, मझे अनेक बार प्रतीत हुआ है कि पण्डित त्रिपाठी-यक्ति और शुद्धि दोनों में कहीं-कहीं भाष्यकार को भी मात कर गये हैं, इतना ही नहीं, उनके व्युत्पत्ति संबन्धी स्पष्टीकरण और भी अच्छे हैं। भुले विश्वास है कि चिद्वान् लोग टिप्पणी में त्रिपाठी जी के प्रयत्न की प्रशंसा करेंगे। ग्रन्थ में अनेक अनुक्रमणिका लगा दी गई है। उनमें सम्पादित दोनों कृतियों की शब्द मूबी का सम्मिलित होना तो स्वाभाविक ही है परन्तु इसके अतिरिक्त अमरकोति के भाष्य के अतिरिक्त दाब्दों की सूची, यौगिक शनरों की सूची, उद्धृत ग्रन्थ और अन्यकर्ताओं की सूची तथा ग्रन्थ में उद्धृत वाक्यों की सूची भी सम्मिलित की गई है। यह सब पण्डित महादेव जी चतुर्वेदी व्याकरणाचाने किया है। सचमुच में अन्य का सम्पादकीय भाग उत्तना पूर्ण बना दिया गया है जितना मानवी शक्ति से संभव था । और इस सब के लिए मैं प्रधान सम्पादक पण्डित महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य की योग्यता की सराहना करता हूं जिन्होंने ऐसे ग्रन्थ के प्रकाशन में इस प्रकार की विद्वन्मण्डली को एकत्रित किया है। काशी हिन्दू विश्व विद्यालय ६ सिलम्बर, १९४९ पी० एल वैद्य एम०ए० डी०लिट मयूरभंज प्रोफेसर सया अध्यक्ष, संस्कृत पाली विभाग।
SR No.090291
Book TitleNammala
Original Sutra AuthorDhananjay Mahakavi
AuthorShambhunath Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size4 MB
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