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मुनि सभानन्द एवं उनका पद्मपुराण माहार निन्या
हमको भौजन बिना विहाय । अग्रे वंगी सूक्षम काय ।। विना आहार तप करघा न जाय । प्रेमी समझि उठे जिमराय ॥३११।। भोजन की विध लहैं न कोड । जिहां जायं तिहाँ प्रादर होय ॥ लाल पदारथ हीरा भेट । मिसै भूप नगरी सहु नेट ।। ३१२।। कन्या कोई : कोई क
द :। केई रच केई सुपपाल । मगनी बात न लहै भूपाल 11३१३।। ए सह छोडि फिरे बह मही । भोजन विधि को जाण नहीं । हथनापुर कुरुरजांगल देश । राज करै श्रेयांस नरेस' ।। ३१४।। तिहां पहुंचे बीते छह मास । एक बरस मही खुध्या पास ।। श्रेयांस सुभ सुपते पाई । मंत्री पूछे तब बुलाइ ।।३१।। काहै मंत्री फल सुपना तरणां । इष्ट पुरुष प्रार्य कोई पाहुणा ।। श्री भगवंत भाव तिह वार । राय यानंदित भया भपार ।। ३१६॥ उमरि सिंहासन करि झंडात । देइ प्रदशिणा करी नमोऽस्तु । ज्यौं रवि फिरई मेर के और । यू मोम नरपति तिह ठौर ।।३१७।। धर्मवृद्धि इन मुस्ल से कहीं। अगोस सुप बहुतै लही ।। वैठि सिंघासण गहि पड़गाह । चरणोदक जल सीम चढाइ ।।३१।। साढा सातसें कलस इक्ष रसी। स्वामी पिया देय सब खुसी ॥ अभयदान बोल कर जोरि । वर्ष रतन साळी पाठ किरोड ।। ३१९।। पुष्प वृष्टि भई बहु भांति 1 पहुंची सकल देम ए बाल ।। ठोर ठोर विधि लिष ले गये । दान तीर्थ भादीश्वर किये ।।३२०॥ मेसी करि भोजन की रीत । अंतर है भातम सौं श्रीत ।। सुनकर भरत मन में उल्हास । प्राये श्रेयांस के पास ।।३२१॥ दहत भांति कीनू सनमान | तो सम दाता और त जान ।।
दीये देस पुर पट्टन धने । प्राया भरत नगर आपने ॥३२२।। कैलाश पर्वत पर ध्यानारूढ होना
श्री जिमराज गये फैलास । तिहां देवता करें निवास ।। ध्यांन च्यार प्रांनी न घरे । साभ दोय पोटे दोय परे ।।३२३।। मारत रोद्र ध्यान दें हीन । लिनकर लेस्या छोटी तीन || नरना कृष्ण नील कापोत । देह दुष जा कीये हीत ।।३२४।। आरति में तिरजच गति बंध । सातै प्रानी एस म बंधे । निसवासर पोटी चित गढे । रहई काल चिर वेली बह ॥३२॥