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________________ ४८६ पापुराम इक दिन मात पिता चित प्रांन । दोनु गए तिहां उद्यान ।। अमृतसोग मुनि को देख । नमस्कार करि पूछे भेल ।।५६६३।। हारे पास पिता पति य । केही प्रभू तिह है हम जांच ।। मुनिवर नै वे दिये बताइ । ये भी भए दिगम्बर रा॥५६६४।। करें तपस्या मातम ध्यांन । गुरु पाउषो पूरी जान ।। नवनीय पाइया विमान : सिखल किया ता मकर का ध्यान ।।५६६५।। पंचास जोजन रेत की मही । तिहां मनुष काई बीस नहीं ।। पडे घूप धरती बहु तपै । रूख नहीं तिहां छाया छिप ।।५६६६|| से मारग निकते साध । देष्या वृक्ष घेर सु बांध ।। वाकी छाया बइठे जाई । भावमंडल यहां नि कस्या वाई ।।५६६७।। देख जती तिहां थवया विमाए । उतरि भूमि पग लाग्या प्रान ।। मुनिवर कूदीया पाहार । मारग सगला भला संवार || ५.६६८।। वइयाप्रत कियां बहु मोति । मुनिवर गये मिनेस्वर जात ।। भावमंडल अंतहपुर जाइ । मान भालिनी गुरपहराइ ।।५६६६।। सोवै थे सप्त खरवं ग्रेह । दामनी घात मों छोडी देह ॥ दंपति जीव दस्यनी ओष्ठ । भोग भूमि की पाई ठोड ।। ५७००।। तीन पल्य की प्राच प्रमाग । तीन के साका कीया जाण ।। अमला सम ते लेइ प्रहार । बहुर सुरगगति लेड अवतार ।।५७०१।। उहां से चए फेरि तप करै । तब दोनू सिव मग पग धरै ।। सुपात्र दान फल हुवा महाद्द । तातें दान देह मन ल्याइ ।।५७०२।। लवनांकुस पंचम गति लहैं। प्रानी का संसा नहीं रहै ॥ मीता देव पूछ कर जोडि । रावण लक्षमण की कहो बहोडि ।। ५७०३।। किस विध इनका कारज सरें। वे कद भव सायर ते तिरै ।। रामनन्द्र कहैं केवल बचन । बालुका ममि रावण लछमन ।।५७०४।। सागर सात भुगतेंगे राज । उहाँ लें निकसि पुरव येत्र की ठांय ।। हरिक्षेत्र विजयावती नगर । सुनंदा सेठ धरम का मगर ।।५७०५॥ रोहिणी नाम साह को प्रस्तरी । सील संयम सो सोभ स्वरी ।। दोनू उसके लें अवतार । प्ररहदास तसु प्रथम कुमार ।।५७०६।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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