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________________ मुनि सभाचंच एवं उनका पपपुराण मीठा बचन कंटोलु हास । उनकू नहीं संसारी पास ।। सुकूल ध्यान सू ल्याया चित्त । अनुप्रेष्या कूपरखै नित्त ।। ५१२४५। म्याठ तीन तोही परकित्त । च्यार करम सु छुट्या हिन । महा सुदि पिछली निस रही । दो घडी त प्रधिकी नहीं ।।५६:५।। केवलग्यांन लबधि सिंह बार | दसों दिसा भयो जय जय कार ।। निरमल दीसे दस है दिसा । दररान किया मिर्ट है संसा ।।५६२६।। इन्द्र पासण कंप्या तिह घडी । अवधि विचार बनती करी ।। उतरी हेट इंडवत किया । धनदत्त कुमार बू प्राग्या दिया ।।५ ।। कंचन मी रची तिहै और । जै जै कार करी सुर प्रौर ५६२८।। इन्द्र धरणेन्द्र किन्नर सहित किया महोत्मब प्राइ ।। प्रष्ट द्रव्य सू पूज करि, वारद, सभा रचाइ ।।५६२६।। व्यंतर देव सेवा कर इ. नरपति स्वगपति और 1 वाणी सुणि सब सम्ब लहैं. पाप बंघ का छौर चौपई गीत इन्द्र अवर सब देव । बिन राकल दीनता भेव ।। हमनै महा उपाया पाप । तुम छल' बन्न दा मंताप ॥५६३१।। तमारा चित्त सुदर्शन मर । ग्रंमा फवाग मर सिंह फेर ।। हम परि क्षमा कहुं जगदीग । बारंवार नवावै गोस ।।५६३२।। केवल वाणी नगम अथाह । उपमें पून्नि मिटै सब दाह ।। मानव संसय होव टूर । प्राणी का है जीवन सूर ।। ५६३३।। रिव के उदै तिमिर मिट जाइ 1 वाणी सुगल मिथ्यात पनाइ ।। उपजी बुध धरम के सुनै । निहले प्रष्ट करम कू हुन ॥५१३४।। केलि वचन अपार, वानी सुनि निह घरं ।। सुख भुगतै संसार, बहुरि जाइ मुक्त बरै ।।५६३५।। इति श्री पापुराणे पक्षमस्य केवलशान प्राप्ति विधान ११४ या विधानक
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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