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________________ मुनि सभाचंद एवं उनका वपुराण अन्य जु देख्या सेली एक राम पूछे तेली सू' भेद पीले रेत न करें विवेक ॥। का करें रेती सुरूं वेद ।। ५५१६॥ रेत माँझ तेल क्यू है | आप पर बेलकू द || बोला तेली सुणु तुम राम । जं जी यह मृतक इस टीम ।। ५५१६ ।। रेल मांझ भी निकस तेल। मृतक जीव तो सही ए पेल ।। सी सुरि बोले रघुनाय । ई गंवार तेली तु कुमाति ५५२०।। होकू कहे तू है मुवां । प्रपने जीव का डर ना ॥ कहा मारू तेली पर षडग कई लू तोड किया उपसरग ।। ५५२१. अग्रे देख्या कौतक अवर | मटकी नीर बिलो सिंह ठोर || गुवाल भी बोलं रघुनाथ जल में माखनिकर्म कि साथ ||२२| कहै हीर मृतक जे जीवई मुदा । तो जल मांहि घडि सन || है किसाग जे जीव मुवा । तो वह कमल हुवे नवा ।।५५२३ जटा देव कोलिक किया गल. १ भदन करें मोह में अंध ।।१५२। समभावे बाकू नरनाह ॥ मुवा न जीवं महा अगूठ || ५५२५ ।। क्रोधवंत तब होड चल्या मृतक एक लीया धरि कंघ रामचन्द्र नैं दिष्या ताहि । तो मोह करे कम मूढ जै लखमरण भी पा प्राण छह फिर जीव तेरा जांन || जें राजा जीवावें मुबा तो ए भी जीव पार्श्वगा नवा । ५५२६ ।। छह महिने वाकू गए वीत । ज्यों लखभरण त्यों या की रीत ॥ राम को वास्तविक ज्ञान प्राप्त होना श्री सुरण चेत्वा रामचन्द्र तोडया तुरत मोह का फंद ।। ५५२७॥ ज्यौं श्रसोग वृक्ष क्रू पाय | जोग विजोग मकल बह जाड़ || त्रिषा से व्याप्या पो नीर | मिट सकल शिवा की पीर ॥। ५५२८ ।। I जैसे श्री जिनवाणी सुरों । भव्य जीव पार्व सुख घणें ॥ ज्यों वटोही कों वन मांहि । सीतल पावें वृक्ष की छांह ।।५५२६ ।। जैसे तपसी पाने मोष्य । जनम जरा के टूटै दोष ॥ मोह दग्ध सबही बुझ गई । उपज्या ग्यांत चेतना भई ।। ५५३०|| ४७३ चिहुं भ्रमाने जीव बहु जौंन । थिरन रह्या किया तिह गौन ॥ मात पिता सुजन परिवार कीया भव में मोह पार ।। ५५३१
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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