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मुनि सभाचंव एवं उनका पद्मपुराण
तुम बिन अन पांणी नहीं स्रावजे । मेरा बचन किम नहीं मानजे ॥ भले भले गंधर्ष बुलावजे । ताल मृदंग बांसरी बजावजे || ५४८६|| सब मिल गावें एक ही बार । जे लखमण सुशीं संभार ॥ गावें गुरगी जन बाजे जंत्र 1 कैसे बोले मृतक तंत्र | १५४९० |
बहरि लिया कांधा परि आप । षष्ट मास प्रति सहें संताप || बेचर भूचर डोलें हिं पास राम न छोडें लक्षमण श्रास ॥ ५४६१ ।।
खरदूषण का संबुकुमार । च्यार रतन सुत बली श्रपार ।। अमाली राष्यस दंस | लखमण का जान्यां उड गई हंस ॥ ५४९२ ।।
रामचंद्र कुं व्याकुल सुन्यां नु सबु खडा हृय ।। काहि दिये ये प्रलंका माइ । विराधित न पहुंचाए जाइ ।। ५४६३|| रावण साइनु मारघा बली सबकी मांनं मरदन गली || प्राया अब हमारा दाब | अजोध्या जाइ विठा नाव || ५४६४ ।।
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च्यार रतन और माली बज्र । सेभ्यां ले सब धाए सस्त्र || घेरी अजोध्या मारू बजाइ नेत्या सुभट संभाल्या राइ ।। ५४६५ ।।
प्रयोध्या पर आक्रमण
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रामचंद्र सो जाई सार दुरजन चदि श्राये तुम द्वार ।। तुम पर बैठो हम करि हैं जुध । रामचंद्र कुं आई सुध ५४६ ।। कंधा भोली लखमण कु लीए । जुन उपाव बहुविध क्रिये ।। बज्रावत्तं गह्या टंकार । हल और सस्त्र लीये संभार ।।५४६७ ।।
दोघां मांड्या सुभटा बेन । शुभ स्वामि धरम के हेत || दारुण जुष दोघां हुवा | पीछे पांव धरें नहीं कुवा ||४|| जटा पंखी स्वर्ग विमान । उन मन मांहि विचारमा ज्ञान || मेरा प्रभु राम लखमरण । उनुं की श्राय वनी है कठिन || ५४६६ ॥ अब इस बिरियां करू सहाय कृतांतवक जीव सिंह ठाइ || जटा देव सों पूछी बात । अब तुम मध्य लोक कू जात ॥५५००||
चैव रूप जटायु द्वारा सहायता
जटा देव पिछली कही कथा | दोनू प्रवधि बिचारी जथा || रामप्रसाद सुगत्यां बहु सुख । व्याप्या अंत मोह का दुख ॥५५०१ ॥ जाइ संबोधे इतनी बार 1 द्रोन्यु चैव प्राए रणह भंभार ॥ जटा देव सेन्या में दोडि । दुरजन के दल मांची शेर ।। ५५०२ ।।