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मंत्री श्रा पीटे सीस । रामचंद्र मुवा जगदीस || मंत्री ने खाई पछाड़ री पीठं सब संसार ||४४२१ ।।
पद्मपुराण
लखमा भाग पटकी पाग । रामचंद्र सुखी देही त्याग || सुण लखमण का फाटा हीया । हाइ हाइ करिने मृतक भया || ५४२२ ।।
राम बिना मैं कैसे जीवं । हा हा करि प्राण दे देई ||
धाइ करि उठ्या देखूं हूं राम । पचा मूरखा हुई हि ठाम || ५४२३ ।
मंत्री रोब बोलई बाव । गए परांन जीव कां न नोव ॥ सहरी सहस्र रोवें अस्तरी । हाइ हाइ करि धरणी पडी ||५४२४॥
कोई पकड़ उठा बांह | कोई इक सबद सुणावो नाह ||
कोई लपट दई कंठ लगाइ । कोई करें बीजपा वाइ || ५४२५ ॥ कोई देखें मुख की रताई ॥
कोई पहला भाइ मृतक देखि सकल विललाई । तब वे दोई देव बिलषांई ||५४२६१ हम उपाया नउतन पाप । एता जीव करें विललाप ॥ नारायण की हत्या लई । हम एह उपाधि इनकों मुई ।। ५४२७||
हांसी करता हुबा नास । लखमण नैं उपजी अति श्रास ॥ हम से हुई महा कुबुधि । इतना किया प्राणि विरुष ।। ५४२८ ||
वैसा पाप टरंगा किस | दोन्या देवां के दुष मन बसे । इन्द्र वचन उन किया प्रतीत पाय पोट निन सिर धरीत ।। ५४२६॥
रामचन्द्र सुगी इह बात | लखमा मुवा तुमारा भ्रात ॥ राणी रुदन करें" ले नाम ||५४३० ॥
हाइ हाइ रुदन करें" श्रीराम
ग्रीन टिकै ढरं तिहां माथ ।।५४३१ ।।
मंदिर में पड़ी देखी लोभ । वासों लपटे दर्या बोथ || पत्र देखें अर सीले हाथ पगढी पटक बस्तर फाहि । भ्राता भ्राता करे पुकार ॥ मोह उदय तें हुवा प्रन्ध | बोलो वेग ज्याँ जीउं मैं बंध ।।५४३२ ||
खाइ पछाति मेलें सिर धूल 1 रुदन सू पोर्ट सुष सब भूल ।। ast बेर चित पाया ग्यान । हम मोह माया में इव्या जान ||५४३४५
मोह मांहि भ्रम चिह्न गति 1 करें तपस्या पावें स्थिति || रामचंद्र आग्या मांगि। महेन्द्र वन के मारग लागि ।।५४३५ ॥
अमृतस्वर मुनियर पं जाइ । नमस्कार करि लागे पाइ || स्वामी हम परि क्रिपा करो भव सागर से हम है ले तिरो ।।५४३६।।