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________________ पपपुराण इस लक्षण गुण चक्र संभार । सन श्रावध विहां दिए हारि ।। अष्ट करम से मांड युध । सह परीसा बाईस सुध ।। ५३६७।। छ महीने लेई माहार । मन बच काई हल अपार ॥ प्रातम चिदानंद सों ध्यान । केवल ग्यान लहै हनुमान ॥५३६८।। करि विहार फिरे बहु देस । भव्य जीव कूदे उपदेस ।। श्रीमती लक्ष्मी अरु भणी। धमती प्रारजिका सु भणी ॥५३६६।। दिव्या देह हम कू आणि । हम भी कर प्रातमा काज ।। सब ही मिले संयम ब्रत लिया । निश्चल ध्यान निर जन किया ।।५४००। देही ते ममता राखी नहीं । जिनके चित्त समकित है सही ।। हनोंमान प्रतिबोधे घणे । प्रष्ट करम परि सब हणे ।।५४०१।। हनुमान पंचम गति नहीं । जोसि मा जोति समाही सही ।। मुकति बध सुख उत्तम शन । दरसन बल बीरज बहु ग्यान ।।५४०२।। कथा सुनै हणुमान की, कर दया सुमान ।। देवलोक सुख भुगति करि, पावं ते निरवाण ॥५४०३।। इति श्री पपपुराणे हनुमान निर्माणा विधानक १०६ वा विधानक चौपई रामचंद्र जब असो सुरणी । हनूमान छोडी सब दूनी ॥ भया मुनी दिगंबर भेस | करै अति काया कलेस ॥५४०४।। प्रबर चेती कुवरों की बात । रघुबर सोप रह विरतांज ॥ रे रे मई मूरख छोई राज ! काया कष्ट सहे बिन काज ।।५४०२ वेषत मसुभ करम का भाव । राज छोरि भिक्षा में माय ।। ए सुख छांडि परीसा सहैं । जैसे बहुरि कहां सुख सह ॥५४०६।। मूरिख लघरण करि करि मरं । पूरव पापन के कहां टरं ।। निदा करी इणु की धरणी । इन्द्रलोक में घरचा इह वणी ।।५४०७।। सौधर्म इन्द्र की सभा तिहां जुडो । सकल विमूत तिहां सोम खरी ।। पुराण कहै इन्द्र जिहां सौधर्म । सिद्धांत बाणी समझार्य पमं ॥५४०६॥
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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