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________________ ४६२ पद्मपुराण परमो ध्यान चिद्रूप सों, दया भाव करि चिर ।। नखमण के सुत प्रतिबली, कियो धरम में हित ।।५३७३।। इति श्री पद्मपुराणे लक्षमण पुत्र मिक्रमण विधान १०४ वां विषानक पपई भावमंडल में चेत्या धरम 1 सकल जनम बांधिया कुकर्म ।। जब गंघरण सु कियो संग्राम । बहुत लोग मारे तिह ठाम ।। ५३.७४।। अपर देस कू बांधे घणो । दुरजन दुष्ट बहुत ही हरणे ।। पांचु इन्द्री मुख कियो अथाह । मानुष अनम दियो यू ही गमाइ ।।७३७५।। यातग काज समार न सक्या। मोह कंघ माया बस थक्या ।। प्रब जे छोडु राज विभूत । हन गय वाहण विभन संयुक्त ।।५३७६।। ए नारी किन्नर उरिणसार । कोमल अंग कमल सुकुमार ।। सदा सुख सों बीतै घड़ी । मो दिन छह रिस जाई बुरी ।।५३७७।। बारह मास किम सह संताप । मुझ बिन मरै कर विललाप ।। इना की कल्पना लागं माहि । किस विध इनसू करू विछोह ।।५३७८|| कोई कोई भूपति बलबान । मान नहीं हमारी प्रान ।। साधू सब संसा करि दूर । तब दिक्षा लेहूं भर पूर ।।५३७६।। प्रेसी विध मन सो घनी । इह जाग इक कारण बण्यो ।। सोये था सत खण मावास | बिजली पडी प्रारण का नास ।।५३०॥ मन मा चितवं था कछु और । प्रण चित्या हवा इरा कोर ।। जिण नहीं ढील धरम की करी । तिसका मन की पुजी रली ।।५३८१॥ धरम करण को कर विचार | सोचि सोचि जे राखे टारि ।। जनम अकारथ यूही खोइ । अवसर चूक कबई न होइ ।।५३८॥ परम काज कीजिए तुरंत । पाषं सुख अरु मोष्य लहत ॥ सोच करंत जे व्याप काल । फेर पड़े माया के जाल ।।५.३०३।। थित चेतन सो ल्याव प्रीत । धन्य धन्य पुरुष प्रतीत ।। पाप तिर प्रवरी में त्यार । फेर न बहुरि भरमै संसार ।।५३८४।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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