________________
४४४
बहुत साध गिर ऊपर रहें। इह पापी सगला ने दहें || चैत्यालय ते श्री जिनदेव । उनको दया विचारें भेव ।।५१२६ ।।
पद्मपुराण
पदम गुष्ट सेती गिरदाव | धरयो मेर पाताल जांषि ॥ दशानन चिघारो तिहां सकल साथ सौं रुदन करें जिहां ॥ ५१३० ॥
मुनिवर के मन माई दया । पणा उठाइ ऊंचा कर लिया ॥ । नमस्कार बालि कु किया ।। ५१३१ ।।
रावण मान मंग तत्र भया
मन वैराग भया सिंह बार | उभा खोया सब परिवार ||
तब धरणेन्द्र विचारं ग्यान यह प्रतिनारायण उपज्या ज्ञान ।।५१३२ ।।
इनका है सा नियोग । भुगतें तीन खंड का भोग ॥
ॐ इह दिया ले भरि ध्यान । त्रेसठ सिलाका होवें दान ११५१३३ ।
1
धरणेन्द्र तब समोध्या ताहि । सक्ती वाण दे दीया ताहि || ताहि समोषि दीया सक्ती । फेर संभाल्या मुगत्या जुक्ती ।।५१३४ ।।
पंड जील्ला
से 11 फरम उ ते भूमिंगोचरी । उनं भाई लंका स्थिति करी ।। ५१३५॥
मारचा रावन लीया बेर । जीत्या तीन खंड सब गैर ।। सतंपुर नगर पुनरबसु राइ | भूमिगोचरी बली अधिकाइ ॥५१३६||
चक्रवर्ति की सुता विवाही । विद्याधर ले भाज्या ताही ॥ उन नारी तप बहु दिन किया । क्षातपुर पति पुनर्वासु की त्रिया ।। ५१३७।।
पुनर्वसु कु भये बहु सोग | राज जोड करि लोया जोग || करी तपस्या श्रातम ध्यान । प्रति समय बांध्या निदान ।। ५१३८ ।।
मैं बलहीन तो त्रिया ले गया। वा कारण बहुत दुख भया ।। मेरे तप का यह फल हो । मो सा बली न दूजा कोई ।।५१३६ ।।
पुनस का जीव लक्षमरण हुआ। या के करसै रावण मुवा ॥ बेगवती मुनि निंदा करी । भूया वचन कह्या तिन घडी । ५१४०३१
1
मुनि ने कही सील मंग किया । मिथ्याती यूँ मन में वारिया || उदय भया वह करम अठ । समकित मे माना सब भूल १५१४१ ॥
बेगवती भंसी रमन मुनि को दोख लगाया जान ॥ पार्टी समझि विवरी चित्त । पचाताप करें नह नित्त ।। ५१४२ ।।