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________________ मुनि सभाव एवं उनका पद्मपुराण चौपई राज सभा बैठिया नरेस | मंत्री कहै समऊ उपदेस ॥। लास तो मिल्या कुमार सीता ने ग्राग्गो इह वार ४८३३|| राम का चितन रामचंद्र चित ति बार सीता सती गुण लध्या सार || परिजा युं ही दूषण दिया । ता कारण हम काढी सिया ।। ४६४०|| अत्र जे सोता आणी फेर कहें लोग से भी ढेर || तो हो फिर नई उपाधि | कीजे कारज मन विच मानि ।।४८४१ ।। जे फेर प्रजा को हो दु:ख कारन कवरण हमारा सुख || चंद्रदर विरानित हणुमान । सुग्रीव नल नील प्रधान ।।४६४२ ।। रतनजी प्रादिक भूपती हिनू विचारी उज्ज्वल मती ॥ देश देश कु लेख पठाइ । भूचर घेवर लेहीं बुनाई ११४६४३ ।। करों प्रतिष्टा श्री जिनदेव । दानमान जिन गुरु की क्षेत्र ॥ सकल सिष्ट कौं यो जिमणार । सीता भी आरण सिंहं बार ।। ४६४४ ।। सब सु पू मंत्र विचार | सीता सत प्रगटै संसार || तब सीता कृ णो ग्रह इ भेज्या द्रुत सकल ही नरपति तव वहां आए व । ४२३ सब के मन का मिट संदेह ||४८४५ ।। सोता को लेने के लिये भेजना चीटी देखि चले सब गइ ॥ सहु परिवार मनोहर बरसे ॥ ४८४६३॥ । सगली भूमि हुई छिड़काय ॥ उतरे निकट जोया माइ सब को भोजन दे रघुपति कीए सनांन बहोत सिंह भती ||४८४७ पंचामृता जीमवें भूप । सोंचा तंबोल बहुत श्रनूप || उत्तम गंगा जी का नीर । प्रासुख संवार कलेस भरि नीर ||४६४८ || कनक कटोरे पि नरिंद बैठी सभा तिहां पंति बंद || भावमंडल विराधित हनुवंत । भभीषण सुग्रीव सामंत ॥ ४८४६ ॥ नल नील चन्द्रउदर राय । रतनजी रघुपति राड ।। पुरुषक निर्माण दिया इन संग । श्रन्य भूप भेज्या बचजंघ ||४८५०१२ पुंडरीक में पहुंचे जाड़ सीता के सब लागे पाइ ॥ ईनानं देख सीता गहभरी। विद्याधर बहु प्रस्तुति करी ||४६५१ ॥ चलो माता तुम हमारे साथ । तुम कारण भेज्वा रघुनाथ ।। सीता कहे परजा हो सुखी । हम कारण मति होवो दुखी ||४८५२||
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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