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________________ पद्मपुराण जैसी प्राग्या सोई होय । ताको वरज सके नहीं कोइ ।। जे में पराया भया प्राचीन । तो में करम कमाया प्राधीन ॥४५८१] सीता का धन में अकेलोपना अपणी निंदा कीनी घणी । सकल बास सीता ने सुनी ॥ मोता कहै पुन र शाहि । तेग रेस इसमें अनादि !!४५६.! रथ ते पांव सीता तिहां घरमा । कृतांत धक प्रयोध्या कु फिरचा ।। बहुत सोच सीता मन करें । धीरज मन में कैसे घर ।।४५६१|| महा भयानक बन की ठान ! तिहां नहीं माणस का नांव ।। सिंघ गयंद तिहां अजगर घणे पसु पंछी बोलत जब सुणे ।।४५६२।। पग धरणे कू नाही ठौर । भाखरण सूल कंटक और ॥ वे मंदिर पाटबर सोज । रतनजोति सुख देखे चोज ॥४५६३॥ पनि फल सुगंध फलेल । घोबा चंदन सौं करता खेल ॥ पाठ सहा मेरे यी साथ । पटराणी यापी धी रघुनाथ 11४५६४।। हमारी प्राग्या मानै यी सर्व । जीन खंड की लक्षमी दर्व ॥ अंसा कर्म उदय हुग्रा प्राय । वे सुख खोसि भेजी इस ठाय ।।४५६५।। के में वच्छ विछोही गाय । के में बाल विछोही माइ ।। के सरबर नै' बिछोहा हंस 1 के पर थोनीका राख्या प्रंस ।।४५६६।। के जिन भक्ति करी न मन ल्याय । के जिनानी चित्त न सुहाइ ।। मुनीस्वर सेवा कहीं नह खरी । साधां की निंदा चित्त घरी ॥४५६७।। प्रगछाण्यां जल पीया जाइ । कंद मूल भषे अथाह ।। पोछा तप कर लिया अवतार । मोहि विछोह भया भरुतार ।।४५६८।। मुगुरु कुवेव कुसास्थ पर चित्त । तार्थं प्राह भई इह चित्त॥ पंछी दिया पिंजरा मांहि । तार्थ हुवा इह दुःख दाहि ।।४५६६।। हाइ राम लक्षमण कहा किया । मोफू देस निकाला दिया ।। हाइ जनक भावमंडल वीर । या सम कोई ना रखें धीर ||४६००। बनबंध वारा सोता का विलाप सुनमा बसगंध पुंडरीक का वरणी । बाक संग सेन्या है घणी ।। इस्ती कारण बन में माइ । पकडधा गज बार्जन बजाइ 11४६०१॥ सुण्या सबद सीता का रोज । भया प्रम देख स्लोज ।। इह वन इसा भयानक छप । देख सबद सुरण बहु भूप ॥४६०२।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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