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________________ प्रस्तावना के लिये समझाया । उसने किसी की नही सुनी । विभीषण ने इन्द्रजीत को राम की ताकत के बारे में सावधान किया लेकिन रावण समझने की बजाय उसे मारने को दौड़ा और उसे लंका से निकाल दिया। विभीषण राम की सेवा में चला गया यह राम की पहिली जीत थी। राम ने उसे लंकाधिपति कह कर सम्मान दिया । धीरेधोरे राम की सेना लंका तक पहुंच गयी। राम की मेला में प्रतेका रोनापति में जितनी कमर के साथी थे । दोनों की सेमा एक दूसरे के सामने खड़ी हो गयी। युद्ध प्रारम्म हो गया और प्रथम दिन की लड़ाई में राम के सेनापति नल नील के हाथों से रावण के हस्त प्रहस्त ये दो सेनापति मारे गये । दूसरे दिन फिर घमासान युद्ध हुप्रा । गोलों एवं मोली को वर्षा होने लगी। दोनों ही पोर के सैनिक मारे गये। तीसरे दिन फिर युद्ध प्रारम्भ हुमा । सुग्रीव प्रागे बढ़ा लेकिन हनुमान ने उसे रोक कर स्वयं जूझने लगा । दूसरी और रावण बढ़ने लगा तो उसके योद्धामों ने उसे रोक दिया भौर म्क्यं जोर शोर में सड़ने लगे | कुम्भकर्ण ने मूर्या बारा छोड़ा लेकिन जब नल और नोल गदा मारने लगे तो वह वहां से चला गया । इन्द्रप्रीत लोकसार हाथी पर चढ़कर लाने । मेषनाद और जबमाली, कुम्भकरण और हनुमान, समीप और इन्द्रजीत, मेधवाहन और भामंडल, बचकाण और विरावित परस्पर में भिड़ गये । गोलियां चलने लगी 1 बरछी, गदा, चक्र जैसे शास्त्र काम में लिये गये । हाथी से हाथी, घोड़ा से घोड़ा और पंदल से पंदल लड़ने लगे । इन्द्रजीत ने मेघ बाण छोड़ा उसके उत्तर में सुग्रीव ने बाण छोड़ा। फिर इन्द्रजीत ने अंधकार वारण छोड़ा । नागपाश की विद्या को याद कर सुग्रीव को नागपाश में बोच लिया। भामजस को भी नागपाश से मूच्छित कर दिया। कुम्भकरण ने हनुमान को पकड़ लिया तथा दांतों से चबाने लगा। दोनों वीर मुर्दे के समान पह गये । तभी विभीषण ने पाकर राम को दोनों के बारे में बतलाया और तीनों की लाश को युद्ध भूमि में जाकर उठा ले पाये। राम ने बड़े धैर्य से विभीषण को सुना। राम को देशमूषण-कुलभूषण केवली ने ऐसे समय देवों को स्मरण करने के लिए कहा था। राम ने वही किया । तत्काल देव प्रगट हुए और राम को कितनी ही प्रकार की विद्याएं दी। राम और सक्ष्मण दोनों ने देव वस्त्र पहिन लिए । चन्द्रहास तलवार बांध ली और दूसरे अस्त्र शस्त्र सम्भाल लिये । प्राकामा गामिनी विद्या को स्मरण किया। रथ के स्पर्श से जो हवा बली उससे नामपाश बंधन टूट गया, प्रधकार दूर हो गया तथा जो लोग मूच्छित हो गये थे वे सब जिन्दा हो गये। फिर युद्ध होने लगा। रावण और विभीषण परस्पर में लड़ने लगे । बड़ा भयंकर युद्ध हुना। रावण ने खेंच कर धनुष बाण चलाया जो विभीषण के कंठ पर समा । धनुष टूट गया लेफिन विभीषण बच मया।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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