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सुनि श्री सभाचंद एवं उनका पद्मपुराण
धरमध्यान सु सु पुराण । नित उठि देई सुपात्री दान || सीता दुर्बल देखी राम । पृथ्वी कहो चित्त का नाम ॥४४९५ ॥ सीता कहे मेरे मन दही । पूजा रचना करउ सब मही ॥1 जिहां लग तीर्थ भने केवली | जिन मंदिर पूजा विष भली ॥। ४४९६।।
रामचन्द्र इभ लक्षमण सुखी । देस देस कू चिठी बी । जिहां लो जिस्थानक किवलास | संभेद सिखर चंपापुर वास ४४९७ ॥ कपिला भवर वाणारसी नगर। जिनमंदिर समराजं सगर || महेन्द्र बन नंदन वन साथ। मुनिसुव्रत मंदिर जिन नाथ ।।४४६८ || सहस्रकूट चरकालय तिहां जिहां ॥। इक इक सहस खंभ चिहुं फेर
फेर
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राम लखमण कुटुंब समेत तिहां सरोबर निरमल नीर ।
वेदी मांझ वणी बहु घेर ।। ४४९६ ॥ गए महेन्द्रपुर पूजा हेतु ॥ छाया सीतल विहंगम तीर ||४५००॥
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हंस चकोर सारस बहू जोव । सबद पपीहा बोले पीव ||
बसतर उतारि करई सनान । श्रष्ट दरव सुं पूज्या भगवान ।।४५०१ ।।
दूध दही रस घृत की धार श्री जिन के गल घाले हार 11 करी भारती हवण कराइ | बाजा बाजे गुरिंग गए। गाइ ।।४५०२ ॥ वृहा
पूजा करि भगवंत की, देय सुपात्रां दान 11
निसको पावे परमपद, पहुंचे मोक्ष सुधान ।।४५.०३ ।।
इति श्री पद्मपुराणे सीता मोहिला विक
८ व विधानक चौपई
पूजा करि फिर माये गेहू बहुत दान सनमान्या देह ॥
सुख में बीत गये दिन घरों 1 इंह जायगा कारण इक बसे ||४५०४ । ।
सीता का नेत्र फटकना
दष्यण भांति फरूके सिया । पचाताप मनमें करे सिवा
करम सर्व वन बेहड फिरी । मन मा ते रावण मपहरी ||४५०५ ।।
सोग मुसुद्र में तब यह पश्वी वे दुख भगत भव भया था कौन
बरस बरस सम बीती घडी ||
क्यों फरकं मघ दष्पन नंन ॥ ४५०६ ।।