SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 457
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नुनि सभाचंध एवं उनका पपपुराण घरि घरि पूर्ज प्रतिमा लोग । रोग कप्ट भागियो वियोग । सप्त रिय प्रतिमा चिहुं वोर 1 काहू को नहीं लाग सोडि ।।४४२०।। नव जोजन मथुरा लंबाइ । जोजन तीन बसे चौडाइ । सर्व सुखि कोई नहीं हीण । पंडित सुघड बस परवीण 11४४२१।। स्वर्गपुरी से मथुरा भली । महा सुगंघ विराज गली ।। राजा राज विचारं नीत । सर्व सुराख उत्तम प्रीत ॥४४२२।। इन्द्र समान समधन राई । बहुले भुपति सेयं पाई ।। जिसका है रवि जेम प्रताप । भाजि गए सब दुख संताप ॥४४२३।। बोहा मथुरा नगर सुहावना, देवलोक समदास 11 सर्व सुखी निवसें तिही, मानें भोग विलास ।।४४२४।। इति श्री पपपुराणे मधुरा उपसर्ग निवारण विधानक ८५ वां विषानक चौपाई दक्षिण कोड बिजयारध मेर । रत्नपुर नगर बस बहू फेर !! रतन असफंदन खेचर भूप । पूरणांतन राणी सु सुरूप ॥४४२५॥ मनोरमा पुत्री ता गेह । रूपचंत कंचन सी देह 11 हरिमन पुत्र भये वलवंत । सेवा करें बहुत सावंत ।।४४२६।। कन्या जोबनवंती भई । नरपति सोच विचार मही ।। मंत्रीयां सेतो बोले वयन । हूढो नरपति देखो नयन ।।४४२७।। उत्तम कुल लक्षण संजुक्त । कन्यां तें होइ गुण बहुत ॥ मूरिख पंडित देखि विचार । उत्तम कुल मो होद कुमार ।।४४२८।। अति पंडित बैरागी होइ । दिष्मा लेई हैं देगी सोय ।। महामूरिख होह दुःख की खांन । कारज कर जाण पियाण 11४४२६।। देस देस कू भेजा दूत । नारिद रिष तिहां प्राइ पहूंत !! सब मिल उठि चणं कू' नए । दरसरण कीया ऋतारथ भए ।।४४३०॥ कन्नड नग्न किया था गौंन । भाखो बात तजो मुख मौन ॥ बोलें नारव सुणों नरेस । देखे पुर पट्ठण मरु देस ।।४४३१।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy