SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 440
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ spx अभीराम पुत्र जनमीया कुमार । हुं षंड रहसी या संसार || जनम समये दीया बहु दान और बजे श्रानंद नीसान || ४१६६ ।। I दिन दिन कुमर बढँ जिम चंद | देख रूप सुख होइ आनंद |1 जोवन समय विवाही नारि । राजसुता वरी तीन हजार ||४२०० ।। पद्मपुराण भोम मांहिं बरतें दिन रयन कुमर बिचारं मनमें जमन ॥ स्वर्ग लोक सुख देखे घर से भी जात न जाणे गिणे ।।४२०११ः इह विभूति संसारी जरजरी । मगन हुवा पाच गति बुरी || वेठा पट्ट तिहां रणवास । ग्यान उदय हुवा परकास ||४२०२ || ए सुख समझें जहर समान । जो कोई भत्रे ताहि जहर समान || विष खाइ एक जु बार विषय लंपटी भ्रमै संसार ||४२०३ ।। जोबन जान न लागे बार पहे जीव माया के आधार ॥ पुण्य पाप जारी एक जाके राखे मन में टेक ॥। ४२०४ ।। ऊंच नीच गति डोल हंस । उत्तम मध्यम पाए हंस || पुण्य उदय पावे बहु सुख । जब विह तव माने दुःख ।। ४२०५ ।। रोग सोग चित श्रारत घरें। अब मैं संयम व्रत कू ध फिरि फिरि जोनी संकट परे ॥1 जैन धरम निश्चय सू करू ||४२०६३ ।। राणी सुखाकर भई थडोल से सुखे कंत के बोल || पाल व्रत तब राजकुमार | एक अंतर लेड अहार ॥४२०७ ॥ पाख महीनें करें पारणा । उमा जोग लगावं ध्यान मंदिर देखे जिहां सतरा || देही दुर्बल कीनी जांन ॥ ४२०६८ ।। काल अनंत इन्द्रियों ने पोष । भरम्या जीव बिना संतोष || बातें देह उस इस भांति सहूं परीसा अपना गात ||४२०६ ।। चउस सहस्र वर्ष तप किया । ब्रह्मोत्तर स्वर्ग पर बासा लिया || धनदत्त सेठ काल को पाइ। लक्ष चौरासी भरम्या जाइ ॥४२१० | पोदनपुर कलाक" द्विज । महिली नारि घर की द्विज ॥ ता घरि अवतरचा घनदत्त भाइ जोवन समये कर्म कमाइ ॥ ४२११॥ जुवा खेलें सेवं सात विसन मानें विश्व लेस्वर पर किसन || ब्राह्मण में सहू को दीये गाल । उनु जब बेटा दियो निकाल २४२१२
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy