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________________ पुगि सभाचंद एवं उनका पद्मपुराण पंचा अगनि साधें वन मांहि । करें तपस्या बार सभी 1 नरपति सुणि दरसन कु चल्या । श्रभिनंदन मुनि देख्या भला ।।४१५६ ।। तेरह विष चारित्र का घणी । मति भूल भ्यान प्रवधि उपनी ॥ मुनि देख्या बाकी ढिग जाय । नमस्कार करि लाग्या पाई ||४१५७।। मुनि बोलें राजा सु बन । दादा निज देखू तुम नंन ॥ जिहां तापसी साथै ध्यान | जलें सरप वर लकडे थान १४१९५८ ।। राजा गया ते लकडा निकाल । चीरघा ठुठ निकल्मा व्याल || जैन धरम की घरी परतीत | धन्य साथ जे इन्द्री जीत ॥४१५६ I पाही जाण्यां सत्र भेष । निश्त्रं जैन परम सु प्रेष ॥ सुरति रति प्रहित तब शिक्षा देइ ||४१६० ॥ राजा चाहे दिक्षा लेई ૨૦૨ तुम चालक घर संतति नाहि । संतति बिन दोक्षा नहीं काहि || जे बिन संतति तप को धरें। मर करि जीव कुगति में प ||४१६१८ जब वह पुत्र सु ईसरथ अपना कुल का करिये घरम सौंपो राज रिध सब गर्थ ।। । अनि भेष घरो मति भरम ।।४१६२ ।। नारद सुं वाद किया बहुत ॥ सा प्रोहित बरै जै भडक ।।४१६३ ।। 1 यों क्षीरकदम का पर्यंत पुत्र वसू भूप को भेज्या नरक । श्रीमदारांणी सुरिण बात । राजाने समझावं बहुभांति ॥ नृप वाकर मानें नहीं कहा। प्रोहित वोट दिया में गह्या ।।४१६४ ।। सो विप्र कहे समझाय । राजा जैन धरम रुचि ल्याइ || सीख हमारी सुराणं न राय । मेरा जजमान हाथ ले जाये || ४१६५ ।। विष देकर मार इस घडी । राशी प्रोहित इह चित्त धरी ॥ विष देकर सब मारया रात्र राणी कु कोट चुवं सब काम ||४१६६ । । प्रोहित सातवां नरक दुख पाय राजा उगं भरम्या जौन मीडक मूसा मृग नै मोर ऊंच नीच गति भरम्या भाइ । महा दुःख सों तिहां विहाय ॥ अंत समय भए इक भौन ।।४१६७॥ कुकर गति दोन्युं इक ठौर ॥ । प्रोहित जीव हाथी की काय ॥। ४१६८३ हाथी ने रोष्या तिहां कीच ॥ कोना खाय गया भी और ।।४१६६॥ राजा जीव मींडक जल बीच फिर मीडक उपज्या सिहं ठौर
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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