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________________ एमपुराण पोदनापुर का रुद्र नरेस । वामनी उठि गई तिहां देस ।। पुहुप कर्ण नगर ना नाम । सवध प्रसाद राणि तिह ठाम ॥३६५८।। हेमकर पंडित तिहाँ गुणी । राजा कंदरप क्रीडा पणी ।। लम्या पांव राजा के माथ । मनमें सोच करै नरनाथ ॥३९५६।। भया परभाति काया कार सुघ । बैठ पाट बिचारी बुध ।। भूपति बहुति सभा में प्राइ । नमस्कार करि लागे पाई ॥३६६०।। पंडित गुणी माए परधान । राजा उनसों पूछ ग्यान ।। रामा के माथे त्यावै चोट । वासों कहा कीजिये खोट ॥३६६१।। मंत्री बोले सब तिरण धार । वाका घर्ण काटो भुपार ।। हेमंकर द्विज बोल्या करि ग्यान । बैही चरन तुम उत्तम जान ॥३६।। दीजे वाहि भला ग्राभरण । असी बात सुस्पी उन कर्ण ॥ भये कोप सभा के लोग । इण विष किम भाषी ये फोक ।।३६६३।। विप्र ने कहा भेद समझाय । बहुत विभूति दई तक राइ ।। मित्र जसा ब्राह्मणी एक । प्रसांक द्विज भुवो घरि टेक ।।३९६४।। सिघई कदर प्रवर पुत्री । तिहां जंटसाल द्विज + थिति करी ॥ सीखी विद्या भए सुजान । सस्त्र सास्त्र सीखर परवान ।।३६६५।। राजा की पुत्री उन हरी । सिंघईद दोड्या सिंह घरी ।। धेरमा द्विज तिहाँ हुवा जुध । सेना की खोई सब सुष ।।३६६६।। कन्या जीत गया निज गेह । सबध प्रसाद ने छोड़ी देह ॥ वित भया नगरी का सव । सब भूपति में प्रगटपो नाव ॥३९६७।। सील वृधि श्रीवृधन संजोग । पोवनपुर का भुगतं भोग ।। राजा सुकेत वापरपुर षणी। भूपति सूवा भय च्यापी घणी ।।३६६८।। सिंघोद देवी ता असतरी । धीवरषन की संका धरी ।। रयण समय दंपति उठि भगे । पोदनापुर बन जाइन लगे ।।३६६६11 तिहाँ भुयंग उस्यों सिंघ इंद । देवी राणी के हुवा दुद ॥ रोवे पीट वन मैं वहीं । तिहां सहाय हुबा कोई नहीं ।।३६७०॥ मधु मुनिंद कर तिहां तप । दयाभाव थी जिनवर अप ।। मुनि में सपरस प्रा वियार । मृतक विष उत्तर भई संभार ।।३६७१।। श्री मुनिवर कू करी इंडोत । पूजा स्तुति करी बहुत ।। बीती रयण उगीयो भाण । विनयदत्त पहुंच्यो तिहां प्राय ।। ३६७२॥
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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