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________________ ૪ विध व्यंजन I वह पकवांन और व्यंजन धने । भात दाल सामग्री मिले || कनकसचाईं सोवन थाल बैठा जिमैं सब भूल ।। ३९२६|| निरमल जल सौं भारी भरी। पी भूपति मानें रती || दूध दही जीमें सब भूप । षटूरस व्यंजन व fter माह से मुख नोषि । चोबा चंदन त्या सुगन्ध ॥ पहिरि भी दस्तर सुवास । सीतल पवन भींजरणा व्यार ।।३६३१ ॥ अनूप ॥ ३६३० ॥ भभीषरण जस प्रगटै भया । सब सेनां कुं भोजन दिया || राजदेहु मन पर बैठाई || ३६३२|| तिहां पट्ट बैठा सोभा धरणो ॥ मंत्री मंत्र करें सुविचार | कोई कहे अजोध्या धमी कोई कहे लंका बडी ठाम इही ठाम दीजिए राज | मनबंधित सी सब काज || प्रठोत्तर कलस राम पै बार । लक्षमण को नींका बंठार !१३६३४ । रायरण तीन षंड का राव ।। ३६३३६८ दिया राज लंका का सवं । कंधन कोट लहे बहु पर्व || लक्षमण बिसल्या सू करि व्याह । सब मिल मंगल करें उछाह || ३६३५ ।। पद्मपुराण एक था दसग नगर को राव | रूपवती कन्या का नांव || कुबेर इस बार खिल भूप । कन्या कलसण माल सरूप ||३९२६ ।। उजेरणी नगर सिहोदर राव । बच्च किरण राजा सिंह ठाइ || भेजी कम्| बहु गुणवंत । व्याह लक्षमणां बलवंत || ३६३७|| जे श्री रामचन्द्र की मांग कियो विवाह दुःख सब त्याग || जे नारी पूरन पुनि कर दई । राम लक्षमण की नारी भई ।। २६३८ ॥ सुख में बीत गए घट वर्ष । सब नगरी मानें बहु हर्ष अजीत एवं मेघनाथ द्वारा निर्वाण प्राप्ति इन्द्रजीत मेघनाद तप करें। रिघ पाय सब कु परिह ।।३६३६| मेघनाद ने केवलग्यांत । इन्द्रजीत घरि श्रातमध्यनि ॥ टूटे चारि घातिया कर्म । उपज्या पंचम ग्यान सुधर्म ।। ३६४०।। विध अरियर हैं गए सिषपंथ । मेघबर तीरथ ग्यांन समर्थ ॥ तुरंगी गिर पर्वत के थान | जंबू माली तप की ध्यान || ३६४१|| हिमंदर पायो सुबिमांण । सुख विलास में हो विहांन ॥ अत्र के वजवीसी तप करें I एवंव क्षेत्रई जिम पद पर ।।३६४२ सा
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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