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________________ मुनि सभापंच एवं उनका पापुराण सप के महातम का परबेस । चन्द्ररस्मि भयानक रेस ।। गिरे कोट के कांगरा भूमि । कांपी मही माए झुम झूमि ॥३८६३१५ निमित्तग्यानी जोतिगी बुलाइ । इह निमित्त पूछ बलराइ 11 कहैं जोतिगी जोतिग देखि । नंद पुत्र के ग्रहै बिसेष ।।३८१४॥ दोई पुत्र भुगतेंगे राज । 4से सकुन भए हैं प्राजि ।। राजा सोच करि कर विचार । होणी होइ सक को टारि ॥३८६५३। जे उसका हैं यही निमित्त 1 तो क्यों माणों विकलप चित्त ।। राजा गरभ की चिता करै । नवमास पूरा अवतरै ॥३८६६।। रतन वरधन जनमिया कुमार । वदन जोति शशि की उनहारी ।। पाई बुद्धि प्रति भए सचेत । राजा सेव करें वह हेत ।।३८६७॥ रतन वरधन परतापी भया । पृथ्वी जीत मति ऊंचा थया ।। सकल भूपति से पाइ। कर बंदन देखें सब भाय ।।३८६८॥ भवदत्त तीजे स्वर्ग विमान । इन मन मांहि विचारा ग्यान ॥ हम थे पुत्र सेठ के दोइ । पसचम जीव रतनवरघन होइ ॥३८६६।। राजविभव में हुचा अंध । बार्क नहीं परम का बंप ।। भरमंगा वह इस संसार । माया फंद में लहै न पार ॥३८७०।। तात वाहि सम्बोजाइ । ज्यू वह भवसागर में ना भग्माय ।। अंसी चित घर आए देव । घारचा रूप दिगंबर भेव ॥३८७१।। पीलिया जांग न देखें ताहि । रतनवरधन रूप धरया नरनाह ।। राजसभा मांही सुर गया । पूछ नरपसि अचरज भया ।।३८७२।। सुर समझाद पिछली बात । हम तुम थे दोन्यु भ्रात ।। तू पसचम हूँ हो भवदत्त । माया मोह में डूप मत्त ॥३८७६।। अजहूं समझि जिम पावें पार । रतनबरषन कू' भई संभार । तजे राज तप साध्या जाइ । नवग्रीबा परि पाई ठाई (1३८७४।। उहाँ ते चये अरवर नग्न । द्रोन्यु देवराज के कुवर १५ राज भुगत उपध्या बराग । भए दिगंबर सब धन त्याग ।।३८७५।। तप करि दसमें स्वर्ग विमान । मंदोदरी गर्म भए त मान । पसचम जीव भवा इन्द्रजीत । भवदत्त मेघनाद इह रह रीत ११३८७६।। इन्द्रमुखी इच्छा इह धरी । ऐसा पुत्र भए सुभ घडी ।। चन्द्ररसम सेठ भरनंद । भए जती भला गुरुवंदि ।।३८७७।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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