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________________ मृमि सभाब एवं उनका पपपुराण वहता ने उपज्यो वैराग । घर परियण सगला सुख त्याग ।। बहुतां ने मांडपो संन्यास । अन्नपारणी तजि करै उपवास ।। ३८३६॥ कोई भए संन्यासी रूप । कोई गए लंका में भूप ।। अपरणे जाइ मुटुव वे मिसे । घरि घरि कथा राम की चले ॥३३॥ अपर मध्य मुनि का संघ सहिस प्रागमन अपर मध्य मुनि लहर तरंग । छपन्न सहस मुनिवर ता संग ।। रिधवंत से वे साघ । जिहां रहैं तिहां मिर्दै उपाधि ।।३८३६।। बैर भाव सब ही का टरै । कोई नहीं उपद्रव कर ।। लंका में वे प्राया मुनी । ज्यार ग्यांन का घारक गुनी ॥३८३६।। नादि का सारसग : दापू पाया वहलोग ।। तपकिरात कंचन सम गात । सब कोई करै मुनीस्वर जात ।।३८४०।। असा मुनि तब करता गौन । तउ रावण ने हतता कौन ।। जादे समें रहै वे जती । तिहां कष्ट नहीं व्यापं रती ।।३८४१।। मुनि को केवल ज्ञान की प्राप्ति सर्व मही है स्वर्ग समान । दोहस जोजन लौ परवान ॥ सुकलान प्रातम ल्यो लाई । केवलम्यान भया मुनिराइ ।।३८४२५ अनंत सत स्वामी अरिहंत । भया जनम घातकी भगवंत ॥ इन्द्र धरणेन्द्र बह विच देव । जनम महोछव कीनी सेव ।।३८४३।। मेरु सुदर्शन पांड का मिला। श्री जिण का माहोछव किया ।। सहस्र अठोतर कंचन कुंभ । खीर समुद्र नीर भरि सुभ ।।३८४४।। कलस द्वालि जय जय करी । तीन लोक में महिमा धरी ।। श्री जिन जी जननी को दिये । सुरपति फिर सुरमालय गये ॥३८४५॥ धरणेन्द्र' का मासन कंपित होना भासण कंप्या तब धरणेन्द्र । अवधि विचार कियो आनंद ।। त्रिकुटाचल लंका में पान । अपर मुनी कू केवलग्यांन ।।३८४६। जय जय सन्द देवता करें। बाजा वाजें देव उजरें । राम द्वारा विचार करना रामचन्द्र या अव सुणे । तब भूपति सोचे मन घणे ॥३८४७।। अंसा कवरण बली इस ठाइ । जिसके बाजा ब. श्ह भाई ॥ रामचन्द्र लक्षमण सुग्रीव ! भावमंडल प्रगद गुण नींव ॥३८४८।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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