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________________ मुमि समापद एवं उनका पमपुराण जहां दामनी का नहीं प्रवेस । या प्रकार बीवस्यौं नरेस । छह दिन बीत सातवां भया । इबै ठि द्रह भीतर गया ॥३८०६।। नावांसुसाकुला लगाइ । उठी घटा सहज के भाइ ॥ घन घटा होइ संसार उवार । कड़की दामनी मारपा तिणबार ||३-१ टूटा इवा राजा दोइ खंड । होनहार महा प्रचंट ।। करम रेख किम मेटी जाय । होरणहार सौ कहा बसाय ॥३८११।। राजा वीजली में मारिया । उन मरणे का अति भय किया । असे का सोग करसा म्याइ । रावण झझा सामों ध्याइ ।।३८१२।। प्रीतकर ने पोया राज । अरिदम मुका सरमा नाहि काज ॥३८१३॥ करभो सयाणय बहुत बिध, मंत्र जंत्र अने उपाइ।। हौंणहार टलनां नहीं, बहुत वरणावो दाय ॥३८१४॥ इति श्री पयपुराणे परिवम विधानक ७१वां विधानक चौपई रावण का दाह संस्कार करना रामचंद्र लछमन संजुत्त । तिहां वंठा भूपती बहुत ।। भभीषण ने बहुते समझाम । दहन क्रिया कीजे अब जाई ॥३१॥ रावण लोन लंड का राव । जाका तिहूं लोक में नाव ॥ वेगी क्रिया तास की होइ । काया बिगडन पावै सोड ॥३८१६।। जो मृतक कौं होई भबार । उपजे जीव वा देह मंझार ॥ म्यानवंत डील नही करें । उठी वेग ज्यौं कारज सरं ॥३८१७।। सब मिल गए मंदोदरी पास । अठारह सहस जिहां त्रिया उदास ।। सोगवंत बैंठी सब नारि । देख राम नैं करें पुकार ।।३८१।। नैनन नीर तहै असराल । रो सगली खाइ पछार ।। तब रघुपति समझाब ताहि । भभीषण वीनवै गहि बांह ।।३८१६।। मंदोदरी बोली तब बान । दहन क्रिया कोज्यो भली भांति ।। साज विमांग पदमसिर गए। चंदन अगर वहू विष सए ॥३८२०॥ पदम सरोवर अंदर भनि । चिता संवारी उत्तम धान ॥ बोले त श्री रामचन्द्र । कूभकर्ण इन्द्रजीत हम बन्छ ॥३८२१।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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