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मुनि समाचन्द एवं उनका पन्नपुराण
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लक्षमण सुणि कोपा बहु भाइ । वा सन मुख सेना ले धाइ । धोनों को सेनामों में पुर
इत उत सेना सनमुख भई । कादि वडग लडाई लही ।।३७०२॥ दंती अजनपिर जिम जुटै । मद के मांते चुने पट । मारें टक्कर टूटै दंत । मसतक फूट बहैं रकत्त ।।३७०३।। छोडें चरखी मारे बाण । पंदल सब झुझं घमसान ।। किसही काहि लई तरवार । बाइ पडे करि मार मार ।।३७०४।। तीर तुपक का ला, घग्य । सुरमा सभी लड़ें तिह चाय ।। तव न मान दोधां हार । घायल घुमे राह मझार ।।३७०५।। रूडमुड परवत सा पहे। रथ सुरथ अस्व मु अस्व भिडे ।। दोउ धां मुझे भूपत घरपे । उनु' का नाम कहाँलू गबणे ॥३७०६।। धनुष खैचि तक मारै वारण । कहतू का छं. तिहां प्राण ।। ग्रघ श्रादि भर्ष तिहां माइ । सुरनर किंनर देखें जाइ ॥३७०६।। वांने धारी जोन लरे । उनू के पीछे पाय न पई ।। कातर भाजे जं रण कू देख । कोई न उवरं मंसा लेस्त्र ।।३७०८।। अंसी कठिन वाणी चिहुं फेर । जित भाजं वित मारें घेर ।। वहरी संग बहरी मुटे । तिनका कोष बहने घटे ।।३७०९।। मार गदा करें चकचुर । चक मारतां मुझे सूर ।। वरछी मारै लेइ उंचाई । कोई महि कर देह बगाई ॥३७१०।। बाथों बाथ लई बलवान । सोणत बई अति नदी समान ।।
है हनुमंत उतै मारीच । घेरि लिया सेना के बीच ॥३७११।। तब पाए अंगद सुग्रीव । संदुव कुभ वित्रम रण सीव ।। पडी मार रावण की सैन । झझे राक्षम भया कुर्चन ।।३७१२।। चिह कोर धाए सामंत टे खडग लोह बात ।। जात्रा देखें हारे लोग । याया पाप जुष के जोग ।।३७१३।। रामचंद्र लक्ष्मण बलवंत । सन्मुख ए धाए न्यवंत ।। पुन्य त हो निज जीत । पापी मरें महा भयभीत ५३७१४।। रावण रामचंद्र सो कहैं । अजहू कटु सास रहे ।। मार तो वेग संवारि । लक्षमण घोल छात विचार ।।३७१५॥ रे गंवार पापी चोर । प्रथक परि मार ठोर ।। बनावत राम कर गह्या । लक्षमण लसुद्रावसं ले रया ॥३७१६॥