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मुनि सभानन्य एवं उनका पद्मपुराण
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कर राम लक्षमण सू जुध । अब मैं अवरन सम बुध ।।
भई ग्यण प्रस्त भया भान । पाशि की ज्योति उदय भई प्रान ।।३६७७॥ रावण को रात्रि
रावण अंतहपुर जाइ । भोग भुगत सों रमण विहाइ ॥ नगर लोग सब माने रली । कोई दुखी न सोभा भली ।।३६७८1। घरि पनि मुमत :." हा प्ररोग । उज्जल सिण्या उजत वर्ण । सोमें सिहां चौद की किरण ।।३६७६।। सुरगपुगे सुर करें बिन्लास | बैठी नारि कंत के पास ।। फूल सुगंघ अरगजा ल्याइ । जिसकी वास मधुकर लुभाइ ॥३६००।। बीण बजागी गावं तान । बोल बचन सुख की खान ।। सखी विवक्षरण होने वाइ । पान नवार्य वीडी वरणाइ ॥६६८१॥ बाउका वग्यां बिराज दंत । सोहैं हीरा की सी मंत॥ काउक काला जाणई विचित्र । सोहैं हाय कमल के पत्र ॥३६८२।। कोमी कामनी मय मंत । वोले सबद कोकिला मंत ।। ते सुख किसप बरणे जाइ । जे वरणें तो पार न पाइ ॥३६८३॥ सुख सू भुगते च्यारू जाम । करि सनाम सुमरे जिन नाम ॥
पूजा करी निरंजन देव । भोजन भुज विचारं भेव ॥३६८४।। युद्ध के लिये प्रस्थान
प्रभु की माशा बजे निसांन । सुण्यां सबद डोहै बलवान ।। काहू कू ज्या बालक मोह । रोब नारी प्रभु भयो बिछोह ॥३६८५।।
आँसू नयन भरे सब नारि । जुध करण चाल्या भरतार ।। कहैं कत सुणु वर प्रान । म खाए हुं प्रभु को धान ।। ३६८६॥ स्वामि काज को धरा सरीर । करो काम मन राख्यो धीर ।। करें बेगि भ पति का काज । जै विधनां अब राखें लाज ||३६८७॥ जीवांगा तो मिलस्यां प्राइ । सह कुटंव भेटघा गल लाई। भया बिदा ने पलायां तुरी । ऊंची चदि देखें सब तिरी ॥३६८८।। गए दूर सब दृष्टि न पई । मूरखाबत नारी गिर पड़े। रावण की सेनां तच चली । भई भोट पामै नहीं गली ।।३६८६।। देखें पटा अटारी लोग । ह्य गय पायक सुभट मनोग ।। भूपति तडे बडे सामंत । वान वारी पले बसवत ॥३६६०॥