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________________ पद्मपुराण रावण द्वारा विद्या सिद्धि बिहु भोर उजियाला भया । विद्या पाइ सुख उपज्या नया ।। बोले विद्या प्रभु प्रागन्या देहु । जो मन हुनै सो कार्य करेह ।।३५८५।। रावण काहे लक्षमण कुवांधि । मेरा इंहि विधि कारज साधि ।। बहुरूपिणी विद्या गुण घणें । रावण सों बह बिनत भणे ।। ३५.८६।। आगन्या देहु प्रभुजी मोहि । कुण खुटक हिरदा मा तोहि ।। तब रावण बोले तजि मौन । उठो वेग अब कीजे गौन ॥३५ ॥ बाँधि भाणु राम लक्ष्मणां । तो समझों तो मैं गुण घणां ।। विद्या का रावण से निवेदन विधा कहै लंकापति सुणु । दानव देव सकल मैं हणु ॥३५८८।। चक्रधारी सूकछु न बसाय । अवर सकल को बांघ जाय ।। सौतिनाथ का दरसन पाय । दई प्रदक्षिणा नवरण करा ||३५८६।। प्रदिल्ल बाद नोवार ग्रह मा करें, बिका भई जू सिंघ सुगुण पहला धरै ।। जो यन इस बात सो या है नहीं, मो में विद्या बहुत एक ये भी सही ॥३५६०।। इति श्री पपपुराणे बहुरूपिमी विद्या प्रागमन विधामक ६५ वां विधानक चौपई रावण का गमन सब रणवास जु कर पुकार · अंगद दुख दिया तिण बार । तुम अग्रेसी करी । तुमारि संक न मनमें धरी ।।३५६११॥ अंगद गांड का कहा बित्त । उन कछु भय। प्राप्पा नहि चित्त ।। तुम ने हमारी न अांनी दया । सब निया कूदुख दे गया ॥३५६२॥ रावण कोप कहै ए चैन । महतो ध्यान घणे दिव जइन । जई किरोध करता पन मांहि । तो मोकू विद्या फुरती नाहि ।।३५६३।। वाकु सुधि मरणे की भई । बैंदर वात उपाजाई नई ॥ ने तो सब ही हैं कीट समान । माह मोडक कई धमसान ||३५६४॥
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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