________________
पुनि सभापन्य एवं उनका पयपुराण
मो कारण लक्षमण जीव दिया । अवर महिरी बिछडी सिया ।। किम दिखाउं मुख प्रापणां ! मोहि अपलोक चढया है घणां ।।३३६१॥ मैं देश्या भाई का मरण । अवर भया सीता का हरण ॥ काठ संकेल अगनि मैं जरूं । लक्ष्मण का कैसे दुख भरूं ।।३३६२।। सहु राजन सू रघुपति कहै । तुम हम संग बहुत दुख लहैं ।। मेरा बहुत किया उपगार । पर उपगारी हो भूपाल ।।३३६३॥ बोले भूपति इस परि बात । जीवैगा लक्ष्मण तुम भ्रास ।। इसका हम करि हैं उपचार । चउकस राखो चोकीदार ।।३३९४॥ दुरजन कोई सक्र नहीं प्राइ । कोई उपाधि न करि है यहाँ प्राय ।। दिसौं दिसा रखवाला रहो। उला पैला का प्राइट लहो ।।३३६५॥ राब जागियो नरपति चिहुं ओर । चौकीदार मिलो कर सौर ।। तिण थानक कोई पैठ न सके । सहु जागियो इम जाण न सके ।। ३३६६।। इदिस पापो सतीद, म वलाप विधानक
५८ वां विधानक
चौपई मन्दोदरी और सीता का विलाप
रावण मन में चिता करें । कुंभकर्ण इन्द्र जीत दोउ मरे ।। रोवं राणी मंदोदती । सुवरण वाम तरणी असतरी ।।३३६७।। कैसे जीवां अइसे दुःख । अब सहु वाद उनू विण सुख ।। अंसा दुष रावण के मना । सीता शुष्पो मुनो लक्ष्मणा ॥३३६८।। रोब लूच सिर के केस । राख सदा राम सु सनेह ॥ हम मरती तो टलतो पाप । मेरै कारण हुवो विलाप ।।३३६६।। सीता तब समझा बैन । अपनां चित राखो तुम चन ।। लक्षमण का होगा जतन | असा दुख निवारे यतन ||३४००।।
सीता समझि रही मुरझाय । अव सेनां मैं करें उपाइ ।। भामंडल और चन्द्राति का प्रागमन
भामंडल जागियो नरेस । चंद्रप्रति में कियो प्रवेस ।।३४०१1। पूछ मामंडल तू कूरण । किह कारण ते कीयो गौरा ।। बोल परदेसी दरसन निमित्त । मैं तो ध्यान घरचा है चित्त ॥३४०२।। भामंडल को है भूपति । लक्षमण के बाण लाग्या सकति ।। रामचंद्र बैठा उन पास 1 रघुपति तिण थां बहुत उदास ।। ३४०३।।