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________________ मुनि समाचन्द एवं उनका पम्पुराण २६६ হিশীলা রায়। ২ম জা বহাল ग़मचंद्र का देख स्थरूप । बंदे चरण भभीषण रूप ॥ राम कहैं प्रात्री लंकेस । तोकु दिया लंका का देस ।।३२१५।। भभीषण मन में भयो प्रानंद । मेरे तुमही देव जिणंद ।। कहो सकल किम लडिया भ्रात । होवे क्रोध में की बात ॥३२१६।। गिरगो भ्राता थे वे दोइ । चंगापरि जाग सब कोइ ।। सूरज देव राज सु करंत । मतिवती पटराणी गुणवंत ॥३२१७।। सुगुपति मुनि भाष्यो धर्म । लीयो त उरण जाण्यो मर्म ।। गिरगोभूत जाम था कहीं। इनै रत्न लिखमी चह लहो ।। ३२१८॥ आवत देखे लोग बहत । ढांक बही लखमी संयुक्त ।। फिरि वे पाए परि प्रापणं । उहां अवर की भवर वर्ण ।। ३२१६।। कोसंबी नगरी के मध्य । बहधन सेठ कूपदा मध्य ।। अहदेव महादेव दोइ पूत । बहुधन मूवा प्राव पहुंत ।।३२२०।। ए दोन्यु उदिम कू चल्या । वे रत्न लखमी पारा भला ।। लषमी घर लाया प्रारणे । वे दोई जाई धरती पणे ॥३२२१।। दोन्यू लडे न मानें हार । गिरि गोमूत सू भई राजि ।। गोमूत कूमार तिन ठोर । अमुभ कर्म त हुवा और ।।३२२२।। प्रहदेव महादेव ल्याया रतन । गिरि पहिचान्या सब जतन ।। गुग्गी बात मन में पबिताइ । उ लहरि पावक के लाग ।।३२२३।। मैं क्यु मारघा अपना वीर | अइस समझि न धारं धीर ।। तात करम इह करतृति । लोमैं दणे पिता ने पति ।।३२२४॥ सुशी बात भाज्या संदेह । हंसडीप दिन पाठ रहेइ ।। सेना के साथ संका द्वीप में पहुंचना इयोढ सहस क्षोहणी दल जुड्या । रार सहस राक्रम के पया ॥३२२५।। भामंडल साथ क्षोहणी सहस । अष्ट दिवस रहे द्वीप हंस ।। बाजा बजाइ लंका में गए । ए सबद रावण के भए ।।३२२६।। सोरठा रावण सकल बुलाये लोग । अंसा वण्या लिहां संजोग ।। सूर सुभट सब इकडे भये । दानई धारी भूपति नए ।। ३२२७।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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