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________________ मुनि सभाचंद एणं उनका पपपुराण उनका दूत भया है प्राण । तोइन भई कोक की काण ।। पई निलज्ज पणा है तेरा । जिय में फल विवेक नहीं धरा ।।३१३९।। पवनंजय का तू नाही पूत । काहू वरांक ते उपज्या दूत ।। जं तू होता उत्तम बंस । तो नाही मानता उपदंस ।:३१४०।। प्रध तोकुं भार कम निरजीव । चंद्रहास सु काटू ग्रीव ।। हनुमान का उत्तर हनुमत बोल्यो निरभय वैन । तो पापी को होसी कुचन ॥३१४१॥ प्रठारह हजार तेरै थी मस्तरी । ते काहे क सीता हरी ।। तेरा मरण पाया है मही । बोटी मति में मनमें धरी ।।३१४२॥ रत्नश्रवा कुल व्योमा भया । राक्षसवंस कलंक से दिया ।। तेरे कुल का हू है नास । मन्त्र तु छोजि जीव की प्रास ॥३१४३।। तेरा नहीं देखण का मुख । चौर जार क्या मान सुख ।। रावण कोपि गह्मा कर खडग । हणवंत को कियो उपसर्ग ।।३१४।। देख बहुत पुरुष अरु नारि । नंगा करि फरयों घर बार ।। मपणां प्रमू नै ज्या दीषा पीठ । ताका सूल ए सब दीठ ।। ३१४५।। घर घर का रावडा बहु जुई। बार सेह सह मूठी भरें। हनुमान का मायामो मिचा नारा संका वहन हनूमान सब बंधन तोकि। विद्या की संभालि यहोडि ।। ३१४६।। लंगूर रूप तिहां सेना करी । बीजसी सम पूंछ भनि संभरी ॥ सगली लंका दई जलाय । सगला मंदिर दीए उहाय ।।३१४७॥ घोपटि करि सका का देस । पछि विमान हनूमान नरेस ।। सीता सुण्यो पकड्यो हनुमान । रोव बहुविध कर मायान ।।३१४८।। इला वाहन कहै चिंता मत करों । हनुमान अपरं बल धरौ ।। लका कूदङ्वट करि गया । सीता प्रासीरवाद यह दीया ॥३१४६।। चिरंजीव है हणमंत । सीता असीस कहैं बहुमंत ।। तिहूंलोक झंजो तुझ नाम । लहियो सदा सुख विश्राम ।३१५०।। हनूमान साका फिया, पुन्यवंत बलवान ॥ वानर राव जस प्रगट्यो घाँ, कारिज कियो प्रषांन ।।३१५१।। इति भी अपुराणे हनुमान सीता मिलन विधान
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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