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________________ मुनि समापार एवं उनका पापुराण २८७ मंदोदरी कहें छाप ते लही । वे तपसी मुवा हैं कहीं ।। घिरा ही पंछी प्रांगणी छाप । तू मन में गरमै है प्राप ।।३०६०।। काह बन में मारघा तापसी । पंछी छाप से नायो नसी ।। वाप देव मन गहे गही । कहां प्रमोध्या ताकी मही ।।३०६१।। एक नगर के वे भूपती । रावण तीन खंड का पती ।। उनका इतना करें भरम । अंसा बचन लगाया मरम ॥३०६२।। सोता सारा राम के सेवक को प्रकट होने के लिये कहना तब सीतां बोली सत बन । राम का सेवग देख्या नयन । कोई हो प्रगटयो प्राय । मेरे मन को संसय जाय ।।३.६३॥ हनुमान का सामने आना हणुमान प्रगटमा सिरा याद । रही सहेली दृष्टि लगाय ।। के इह सुर के खेचर मूप । के इह कामदेव का रूप ॥३-६४॥ सीता कू किया नमस्कार । प्रस्तुति बहुत करी तिण वार ।। नि धनि हो तुम सीता मात । ग्यारह दिन दुख सह्मो इण भांति ।।३०६५।। देह सुकाई करी पति पीण । राम नाम सुभरण में लीन ।। अपणा राखियो मन अडोल । रामचंद्र बम बोल्या वोल ॥३०६६।। किषधपुर में सेना जोडि । प्रत्र करि हैं लंका परि दोड । सीता के प्रश्न सीता कहै सुणु हणुमान । तुम अन राम कद की पहचान ||३०६७।। मैं तुम क नहीं वेख्या सुष्पां । किस विध उणस्यों सनबंध नण्यां ।। उनु के कारण आये लक । मन में कछु प्रन प्राणी संक ॥३०६८।। ध्यौरा सू समझा वात । मिट संदेह सुरिए विरतांत ।। लक्षमण तणी कहो कुसलात । छाप एह पाई किग भांति ।।३.६६।। के रामचंद्र ने दीक्षा लई । के इह छाप पडी तुम पई ।। हनुमान का उत्तर हणवंत बात कही समझाइ । रामचंद्र दंडक वन रहे पाइ ॥३०७०।। संबूक चन्द्रनखा को पूत । साधी विद्या तप किया बहुत ।। द्वादश वर्ष में विद्या फुरी | सूरजहान प्राया तिह घडी ।।३०७१।। लक्षमण ने बह लीया सहग । संबू कू मार किया उपसर्ग ।। चंद्रनला देख पुत्र का सूल । तब सुधि गई सबै मूलि ॥३०७२।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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