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मुनि सभाचं एवं उनका पद्मपुराण
तासू कही बात समझाइ हो कहै है रावण नैं जाइ ॥ रावणा के सीलव्रत की टेक । श्ररण बांछित किम तजे विवेक ।। २६३३ ।।
सिमा तुम्हारी देगा प्राणि | भेजो दूत कोई चतुर सुजां ॥ पवनपुत्र बली हणमंत सूरवीर महाबल श्रनन्त ।। २६३४ ।। जो वह जाए तो गाने 'या। श्री पंगा ! लिपा पत्र विवरां सूं भला । द्रुत लेई ततक्षप चला ।। २६३५।। इति श्री पद्मपुराणे लक्षमण कोटि सिला उतक्ष पा विधानकं ४३ व विधानक
हा
रामचंद्र लक्षमरण सबल परदुख मंजया हार ॥ कोडसिला उठाइ करि, प्रगट भए संसार ।। २९३६ ॥
चौपाई
श्रीपुर नगर राना हुनुमान । सर्व सुखी परजा तिरण ठांम ॥ नगर सीम कछु जाय न गिट्टी । स्वर्गपुरी की महिमा बली ।।२६३७ ।।
अनंग कुसमा खरदूपरंग पुत्री । दक्षिण मांति फुरकै खरी ॥
लंका से व्रत का ग्रागमन
२७७
नरमंद दूत लंका तैं आइ । संबुक दूषन की कहे समझाय ॥२२८॥ रामचंद्र लक्ष्मण दोउ वीर सीता नाम त्रिया उन तीर 1 अक्षमता ने मारा संबूक । खडवूषण भी हयां अचूक || २६६६ ॥ ।
सेना जुड़ी नरपति घने । नांमावली कहां लग मिले || ऐसी बात अंतहपुर सुगी रोष हणुमांन सब दूंगी || २६४० ।। अनंग कुसमा सब परिवार भई सुरखा खाय पछाड | पोर्ट हियोर खोस फेस हा हा कार करे बहु भेस ।। २६४१ ||
पी बजवा अंन कोकिला | अंमा सबद उपों का नीकला || वैसे भीमगोचरी करण हा विष प्रगट भए भर जौरा ।। २६४२ ।।
खडदूषण सा मारया राय करे सोच प्रति दुखित मयाय ॥ श्रीभूत सुग्रीव का दूत : ग्यानवंस प्रतिबल संजुत || २६४३|| कवा काज प्राये तुम दूत। सा कारिज करण बहुत ॥ हनुमान को करि नमस्कार । पवनपुत बोले ति बार | ।। २६४४||