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________________ मुनि सभाव एवं उनका पद्मपुराण रामचंद्र सेना बहु जोडि । विट सुग्रीत्र परि दोनी दोड ॥ afa दोष नख श्राइ | बाजा मारू सबै बजाइ ११२८५२ ।। । दोन्यू छोडे विद्या वांण । बहुलां का उड़ गये परां रामचंद्र भय करें न गात । विट सुग्रीव लडे इस भ२८५३९९ सुग्रीव राज पायो फिर देश बहुत आनंद सुख लह्यो नरेस || रामचन्द्र का महोछेक किया । तेरह कन्या भेट ल्याइया २२५५४।। सुप्रीव द्वारा तेरह कन्याओ को भेंट में बेना चन्द्राभान हुदा शाहिरी को प्रतधरा नाम चडपी श्रीकांति सुंदरवती चन्द्रसम क्रान्ति ।। २८५५॥ मनोबाहनी च्यारू सिरी । मदनोत्सवा गुणवंती खरी ॥ पदमावती निवती बहुरूप । गुण लाक्ष्य प्रति दिसं अनूप || २६५६ ।। पुग्य संजोग मिली ए नारि । रूप लक्षण गुण अगम अपार || रामचंद्र कुं करि इंडोत । सगलां विनती करी बहोत || २८५७।। २७१ देस देस के आये राय । कोई नही हम तुष्टं श्राइ ॥ तुमारी सेवा हम करि हें भली । बहुत भांति होसी मन रसी || २८५८ ।। श्री रामचंद्र पुनवंत घरम श्रवतार हैं । पुन्य गुण बल रूप लह्यो भरणपार है ।। कनक वरण कामिनी के मन चाव है । हरी जु सीता नारि असुभ पर भाव है ।। २८५६ ।। इति श्री पद्मपुराणे विट सुप्रीय विधानक ४२ विधानक चौप कन्याओं के हाव भाव ताल मृदंग बजा दी || नो तन तान से चार वरं ।। २८६० ।। अधिक सोच सीता को नित्य ॥ कन्या सकल परम परवीण कई गायें कई नृत्य जु करें। रामचन्द्र का डुल्या न चित्त कांनी हाव भाव बहु किया राम लक्ष्मण बोले ति बार । वन के कछु न आई हिया ।। २६६१ ।। सुग्रीव अपतु काज संवार ।। परी सुख की मानें रुचि । सीतों का ऋतु करें न सोच ।। २६६२ ।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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