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पद्मपुराण
बोले कि उसार सांप | उतारया अनही राजा भाप || चढे कोप कई कैलू प्रांन सा नं मोडूं इस थान । २६०६।१ मुनि के चारों ओर अग्नि जलाना
फिर बोल्या वाडा चहुं फेर । काठ संभारो बहु तिहां घेर ॥
काहूं कु निकलर मत बोह । दावानल माहीं कोचो व्योह || २६१०११ पापी दुष्ट विचारी बुरी । श्रई नरक जो की घड़ी ॥
व्यारों तरफ लगायी आग । मुनिवर ध्यान निरंजन लाग ।। २६११।। लग्या झील देही सब जरें । मुनिवर नहीं ध्यान तें दरें ॥ पात्रकध्वज सबन को देव । अगनि बुझाह करी मुनि सेव ।। २६१२ । ।
वाही अगनि देही सब जाल । सकल प्रथी बल हुई लाल || दाभे जीव जन्तु सब मुये । राजा नरक सातवीं गये || २६१३|| भरभ्यो लख चौरासी जोंनि । अब ए गुद्ध भए करि गौंन ॥ हमारा भत्र देख्यो परतक्ष । वानारसी नम्र रहे तिहां रक्ष ।। २६१४ । । अचलराय एवं गिरदेवी द्वारा मुनि को आहार बेना
श्रचलराम गिरदेवी अस्तरी । रूप लक्षण गुण सोहें परी ॥
त्रिगुप्ति मुनिन कु दियो प्रहार | दिखाया भाषणां हाथ पसार ।। २६१५।।
मेरे सतति होय कि नांहि । भाषो मोहि जिम मिटें दाह || मुनि बोल्या होसी सुत दोइ । सुगुपति गुपति तेरे गरभ होय ।। २६१६ ।। सोमप्रभ प्रोहित है राय । सोमिला स्त्री गर्भ के भाय ॥
सुकेत और अग्निकेतु द्वारा बोक्षा लेना
प्रथम सुकेत अनं श्रगनिकेतु दोनू वीर है बहु देत । २६१७ ॥ सुकेत अनंतवीयं मुनि पास। दिक्षा लही सुगति की प्रास ॥ अनिकेतु संन्यासी भया । पंचगनि साधी तप किया ॥२६१८ ॥
सुकेत् विचार ग्रेसा ध्यान । प्रगति केतु तप करें प्रग्यांन ॥ काय कलेसयों दहे सरीर । अन्य जीब किन भावे पीर ।। २६१६।।
सूक्षम बादर विराधे प्रान । अणगालं जल करें प्रसनांन ॥ वा कुं परमो धूमैं जाय । गुरु सू प्राज्ञा मांगी माय ।। २६२०॥
प्रनंतवीर्यं सुकेत सू कहें। अगनिकेत मन मिथ्या है ॥ तुम्हारा मांगा नहीं यंन । प्रग्यानी किम समझें अंन ।।२६२१|
कोष मान माया का षणी । जैन धर्म खोडा की अणी ॥ रागदोष वाकं मन बसे । संयम विन्या नहीं जल्दसं ।।२६२२ ।।